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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


छोड़नेपर पुनः-प्रवेशकी गुंजाइश बहुत ही कम थी। परन्तु यूनियनिस्ट दलके सदस्योंके दृढ़ विरोध तथा सत्याग्रहके भयके कारण विधेयकमें कुछ मामूली संशोधन कर दिये गये हैं। कितना अच्छा होता कि यूनियनिस्ट सदस्य अपनी दृढ़ता अन्त तक कायम रखते ! लेकिन श्री फिशर यह कहकर उन्हें बहकाने में सफल हो गये कि साम्राज्य-सरकार विधेयकको पहले ही स्वीकार कर चुकी है। किन्तु पत्र-व्यवहारसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि संशोधनोंके बावजूद, यह विधेयक भारतीय सवालका कोई हल पेश नहीं करता और साथ ही इसमें बहुत सारी बातोंकी ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया है। यदि इन्हें तय न किया गया तो निश्चित ही फिर सत्याग्रह आरम्भ हो जायेगा। यदि श्री फिशर सोचते है कि हम अपने निहित अधिकारोंके अपहरणके बावजूद उनका विधेयक स्वीकार कर लेंगे तो इसका यह मतलब हुआ कि वे निश्चय ही भारतीय समाजको निरा मूर्ख समझते हैं। उनकी यह धमकी कि यदि हम इस विधेयकको स्वीकार नहीं करते, तो वे वैवाहिक संशोधन वापस ले लेंगे, एक जिम्मेदार मन्त्रीके सर्वथा अयोग्य है। या तो संशोधन किसी दोषको दूर करने के लिए लाया गया है, और या फिर वह निकम्मा है। अगर वह दोष दूर करने के इरादेसे लाया गया हो, तो संशोधनकी आवश्यकतापर हमारे समाजके रुखसे कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। किन्तु सच तो यही है कि संशोधन सर्वथा निरर्थक है। एक प्रभावहीन संशोधन द्वारा हमें भ्रममें डालकर यह विश्वास दिलानेकी कोशिश करना कि हमारी इच्छाओंका सम्मान किया जा रहा है, बेईमानी है। ज्यादा ईमानदारीकी बात यह होती कि हमसे साफ-साफ कह दिया जाता कि हमारे विवाहोंको मान्य नहीं किया जायेगा। फिर, यह वैवाहिक कठिनाई तो विधेयकके अनेक दोषोंमें से केवल एक है और जबतक सिनेट साहसपूर्ण उपायोंका अवलम्बन करनेको तैयार न हो, तबतक कथित रूपसे सत्याग्रहियोंको सन्तुष्ट करनेके लिए बनाया गया यह विधेयक तो केवल उन्हें फिर लड़ाई शुरू करनेपर मजबूर करेगा - फिर उसकी चाहे जो कीमत क्यों न चुकानी पड़े।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-६-१९१३

७६. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२३]

५. कब्ज, संग्रहणी, आँव और बवासीर

इस प्रकरणमें चार रोग साथ ही लिये गये हैं। साधारण तौरसे इस बातपर आश्चर्य होगा। किन्तु इन चारों रोगोंमें परस्पर निकटका सम्बन्ध है और हमारा उपचार, जिसमें औषधिका उपयोग नहीं किया जाता, इन चारोंके लिए प्रायः एक-सा ही है। जठरपर जब अधिक बोझ डाल दिया जाता है तो कइयोंको अपनी-अपनी तासीरके मुताबिक कब्ज हो जाता है यानी पाखाना नियमित रूपसे या बराबर नहीं होता और आता भी है तो अत्यन्त काँखना पड़ता है। यह स्थिति यदि अधिक समय तक चलती रही तो खून आने लगता है। इसमें कभी आँव आने लगता है और कभी