विधेयकमें ऐसे संशोधन करनेपर जोर देकर अपने कर्त्तव्यको पूरा करेगा जिनसे अस्थायी समझौतेका, भाषा और भाव, दोनों दृष्टियोंसे पूर्ण पालन हो सके।
नेटाल मयुरी, ३-६-१९१३
'७४. तार : गृह-मन्त्रीको
[डर्बन
जून ५, १९१३ के बाद]
मैं देखता हूँ कि ३-पौंडी कर सिर्फ भारतीय औरतोंपर से हटाया जा रहा है; मैं समझता हूँ कि फिलहाल उसे पुरुषोंपर से हटानेका कोई इरादा नहीं है। इससे उन हजारों भारतीयोंको बहुत बड़ा सदमा पहुँचेगा जिन्हें श्री गोखलेके आगमन-कालमें विश्वास दिलाया गया था कि उक्त कर सभी स्त्री-पुरुषोंपर से हटा लिया जायेगा।[१] नेटालके सर्वाधिक जिम्मेदार लोगोंने श्री गोखलेसे भेंट की थी। मेरी जानकारीमें उनमें से कोई ऐसा नहीं था जिसने करके पक्षम की हो अथवा इसके हटानेपर आपत्ति की हो। मैं आशा करता हूँ कि भी सरकार और संसद इस करको पूरी तरह हटानेकी आवश्यकताको समझेगी और जो न्याय कब-का मिल चुकना था मिलेगा।
मो० क० गांधी
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५८०९) की फोटो-नकलसे।
७५. विधेयक
अन्यत्र प्रकाशित श्री फिशर और श्री गांधीके बीच हुए पत्र-व्यवहारसे[२] स्पष्ट हो जायेगा कि श्री फिशर हमें लगभग उन सभी अधिकारोंसे वंचित करनेका पूरा इरादा कर चुके थे, जिनका उपभोग विभिन्न प्रान्तोंके वर्तमान प्रवासी कानूनोंके अन्तर्गत हम करते आ रहे है। सिर्फ एक अधिकार हमारे लिए छोड़ा जानेवाला था और वह यह था कि जो लोग विभिन्न प्रान्तोंमें इस समय सशरीर निवास कर रहे हैं वे अपने-अपने प्रान्तोंकी सीमाके अन्दर बने रह सकते हैं। लेकिन इसमें भी अपना प्रान्त