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वक्तव्य: प्रवासी विधेयकके सम्बन्धमें


पानी ही चमत्कारिक वस्तु साबित हुआ है। और जब रोगीकी जीभ साफ हो जाये तो उसे केलेकी खुराक दी जाये। केला भी ऊपर बताई गई पद्धतिसे तैयार करके दिया जाय। रोगीको यदि दस्त न हो तो जुलाब देनेकी अपेक्षा थोड़ा सुहागा डालकर गरम जलका एनिमा दे दिया जाये, जिससे पेट साफ होगा और इसके बाद जैतूनका तेल-मिश्रित खुराक पेटको साफ बनाये रखेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-५-१९१३

७३. वक्तव्य : प्रवासी विधेयकके सम्बन्धमें[१]

[ डर्बन
जून २, १९१३]

यदि इस विधेयकका कई महत्त्वपूर्ण बातोंमें संशोधन नहीं किया गया तो मुझे लगता है कि सत्याग्रहका पुनः आरम्भ किया जाना अनिवार्य हो जायेगा। सन् १९११ के अस्थायी समझौतेमें दो मुख्य शर्ते हैं, जिन्हें सरकारको पूरा करना है। एक तो यह कि भारतीयोंकी मांगें पूरी करनेके उद्देश्यसे जो भी नया कानून बनाया जाये उसमे भारतीयोंके वर्तमान अधिकार ज्योंके-त्यों कायम रखे जायें, और दूसरा यह कि,अवयस्कोंके अधिकारोंसे सम्बन्धित अंशको छोड़कर, १९०७ का ट्रान्सवाल अधिनियम सं० २ रद कर दिया जाये, तथा इस प्रकारके किसी कानूनमे कोई प्रजातिगत भेदभाव न रखा जाय। विधेयकके संशोधित रूपसे भी ये दोनों शर्ते टूटती हैं। साम्राज्य सरकारने ७ अक्तूबर, १९१० को भेजे अपने खरीतेमें जो घोषणा की थी, उससे भी हमारे इस दावेकी पुष्टि होती है कि वर्तमान अधिकारोंको सुरक्षित रखा जाना चाहिए। खरीतेमें यह बात अलगसे कही गई है कि सम्राट्की सरकार (ट्रान्सवालके विवादका) ऐसा कोई हल स्वीकार न करेगी जिससे केप कालोनी और नेटालमें रहनेवाले भारतीयोंकी वर्तमान स्थितिपर कोई आँच आती हो या जिसके कारण वह किसी प्रकारसे कमजोर होती हो। और श्री हरकोर्टने अपने १५ फरवरी, १९११ के तारमें उस सालके प्रवासी विधेयककी चर्चा करते हुए इस बातपर फिर जोर दिया था। निम्न तथ्योंपर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान अधिकारोंको खतरा पैदा हो गया है:

वर्तमान केप प्रवासी अधिनियमके अन्तर्गत दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोंको केपमें प्रवेशका निर्बाध अधिकार प्राप्त है। अब यह अधिकार छीना जा रहा है।

  1. १. केप टाउनसे गवर्नर-जनरल लोर्ड ग्लैडस्टनने इस वक्तव्यकी नकल ४ जून, १९१३ को उपनिवेशमन्त्रीको भेज दी थी। यह ३ जून, १९१३ के केप टाइम्स और नेटाल मयुरीकी सम्पादकीय टिप्पणियोंके साथ ७ जून, १९१३ के इंडियन ओपिनियनमें भी छापा गया था ।