पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/१३

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सात 21 MAY 1965 कोशिश की। उन्होंने प्रिटोरिया जाकर २८ जूनको भारतीयोंका दृष्टिकोण पेश किया और यह आश्वासन माँगा कि कमसे कम अगले वर्ष तो कानून संशोधित कर दिया जायेगा। उन्होंने २ जुलाईको गृह-सचिवसे भेंट की और भारतीयोंकी ये बुनियादी माँगें पेश कीं : केप प्रान्तमें प्रवेश के अधिकारको मान्यता, नेटालमें अधिवास सम्बन्धी अधिकारोंकी रक्षा, फ्री स्टेटमें प्रवेशाथियोंसे भूमि, व्यापार, इत्यादिसे सम्बन्धित हलफ- नामेकी माँग न करना और कानूनके संशोधन द्वारा या विवाह-अधिकारियोंको प्रमाणी- करणकी शक्ति देकर भारतीय विवाहोंका वैधीकरण । उन्होंने कहा कि आखिरी माँगके अतिरिक्त अन्य सभी माँगोंको प्रशासकीय कार्रवाई द्वारा पूरा किया जा सकता है । (पृष्ठ १२० ) । गांधीजी जनरल स्मट्ससे भी भेंट करनेके लिए तैयार थे, परन्तु जोहानिसबर्गके कोयला-खनिकों की हड़ताल के कारण जनरल स्मट्स लगातार व्यस्त बने रहे । गांधीजी ११ अगस्त तक भी औद्योगिक झगड़ा शान्त होनेपर जनरल स्मट्ससें भेंट कर पानेकी राह देखते रहे, परन्तु उनको इसी उत्तरपर सन्तोष करना पड़ा कि गृह मन्त्रालय उनके २ जुलाईके प्रस्तावोंपर विचार कर रहा है। गांधीजीने ३ सित- म्बरको फिर अनुरोध करते हुए कहा कि अपनी माँगों में नरमी और संयम बरतने में उनका उद्देश्य समझौतेको आसान बनाने और यह दिखलानेका रहा है कि भारतीय लोग संघर्षकी पुनरावृत्तिके लिए 'उतावले' नहीं हो रहे हैं। परन्तु गृह मन्त्रालयने १० सितम्बरको ऐलान कर दिया कि वह अगले वर्ष भी संसदीय कार्रवाईके जरिये वर्तमान विवाह कानूनका आधार बदलनेका वचन नहीं दे सकता और उसने विचाराधीन मुकदमे को वापस लेनेसे इनकार कर दिया । इस प्रकार सत्याग्रह सर्वथा अनिवार्य हो गया; दूसरा कोई चारा नहीं था । गांधीजीके द्वारा इस अवसरपर व्यक्त किये गये इन उद्गारोंसे एक समूचे उस समाजकी मनोव्यथा टपकती है जिसे अधिकारियोंकी जिदके कारण संघर्ष छेड़ने के लिए लाचार होना पड़ा था... " एक प्रतिनिधित्वहीन समाज है और उसकी कोई सुनवाई नहीं होती; उसे अतीत में बहुत गलत समझा गया है; वह एक विचित्र किन्तु तीव्र प्रजातिगत विद्वेषके हाथों तबाह है, और इसलिए वह अपने गौरव और सम्मानकी रक्षा त्याग और कष्ट सहनके सिवा किसी अन्य उपायसे नहीं कर सकता । (पृष्ठ १७९-८०) १२ सितम्बरको ब्रिटिश भारतीय संघने सरकारको सत्याग्रहकी पूर्व सूचना दे दी । " इस बारका सत्याग्रह ट्रान्सवालकी सीमा में अनधिकृत प्रवेश तक ही सीमित नहीं रहना था, परवानोंके बिना ठेले लगाना या व्यापार करना और माँगे जानेपर भी परवाने दिखाने से इनकार करना भी उसमें शामिल था । स्वाभाविक तथा नैतिक आधारसे कानूनोंका खुले रूपसे उल्लंघन किया जाना था । आन्दोलनकी शुरुआत १५ सितम्बरको की गई थी। कस्तूरबाके नेतृत्वमें १२ पुरुषों और ४ स्त्रियोंका एक दल गिरफ्तार होनेके लिए डर्बनसे फोक्सरस्टको रवाना हुआ। एक शक्तिमान सरकारके विरुद्ध ... मुट्ठीभर" अल्पसंख्यकोंके दलका इस प्रकार भिड़ना एक प्रतीकात्मक कार्य था । (पृष्ठ १८६ ) २० सितम्बरको वे गिरफ्तार किये गये । तीन दिन बाद, कस्तुरबाको कठोर परिश्रम सहित तीन महीनेके कारावासकी और अन्य सत्याग्रहियोंको "1