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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और यदि विवाह-सम्बन्धी यह सवाल तय हो गया और वर्तमान अधिकारोंमें से किसीका अपहरण नहीं किया गया, तथा यदि फ्री स्टेट सम्बन्धी कठिनाई सन्तोषजनक रीतिसे हल हो गई, तो केवल दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोंके वर्तमान अधिकारका एक सवाल बच रहेगा। हम यही आशा कर सकते हैं कि सिनेट इस मौकेपर जैसा अपेक्षित है वैसा कार्य करेगी; सरकार एक पवित्र समझौतेको पूरा करनेकी आवश्यकता समझेगी; और इस अधिकारको पुनः बहाल कर दिया जायेगा। पर यदि ऐसा न हुआ तो हमें इसमें कोई सन्देह नहीं है कि सत्याग्रही इस एक ही सवालके लिए लड़ेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-५-१९१३

७१. मुनियनका मामला[१]

इस मुकदमेके दौरान पेश हुई शहादत और वेरुलमके मजिस्ट्रेट द्वारा सुनाई गई निर्दयतापूर्ण सजाका विवरण हम इन स्तम्भोंमें पिछले पखवारे प्रकाशित कर चुके है। यह सर डेविड हंटरकी सहानुभूति ही है कि उन्होंने विधानसभामें इस मुकदमेको अपने प्रश्नका विषय बनाया। सर डेविडके अत्यन्त उचित सवालका श्री सॉवरने रूखा, बेमुरौवत और दर्पपूर्ण जवाब दिया। सवाल और जवाब दोनों ही अन्यत्र दिये गये है। पाठकगण उन्हें पढ़कर स्वयं ही निर्णय कर सकते हैं। हमारे सामने तो स्पष्ट है कि श्री सॉवरने उक्त जवाब सिर्फ इसीलिए दिया कि इस मामलेका सम्बन्ध एक ऐसे गरीब, उपेक्षित भूतपूर्व गिरमिटियासे था जिसकी जातिका एक भी प्रतिनिधि विधानसभामें नहीं है, और जहाँ श्री सॉवर और उनके सहयोगियोंकी ही बात चलती है। फिर, यह जाति ऐसे पूर्वग्रहका शिकार बनी हुई है, जिसके कारण कोई भी बिना किसी भयके उसको मनमाने ढंगसे अपमानित कर सकता है। यदि यह मामला किसी यूरोपीयका होता, तो श्री सॉवर इतनी लापरवाहीके साथ जाँचको टालनेकी हिम्मत न करते, न वे मामलेके प्रति अपना अज्ञान व्यक्त कर उसमें गौरव अनुभव करते; और न यह कहते कि विधानसभाको, जो हर हालतमें राज्यके छोटेसे-छोटे प्रजाजनकी भी भलाईके लिए अन्तिम रूपसे उत्तरदायी है, मजिस्टेटों द्वारा किये गये निर्णयोंकी आलोचना करनेका अधिकार नहीं है।

पर सच है कि विनाशके पूर्व दम्भ और पतनके पूर्व दर्प आ ही जाता है। इधर जब श्री सॉवर अपना हृदयहीन उत्तर दे रहे थे, उधर न्यायमूर्ति हॉथॉर्नने मजिस्ट्रेटकी कार्रवाईपर पुनर्विचार शुरू कर दिया और उन्होंने उसे इतना अनियमित और गैर-कानूनी ठहराया कि मुनियनकी केवल सजा ही रद नहीं कर दी, उसे अपीलका

  1. १. मुनियन नामक एक भारतीय महिलापर तीन-पौंडी करकी बकाया राशि अदा न करनेका आरोप लगाया गया था। बकाया राशि अदा कर देनेपर भी उसे न्यायालयकी अवमाननाके अभियोगपर १४ दिनके सपरिश्रम कारावासकी सजा दी गई थी।