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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

५. यूरोप में प्रचलित विवाहकी पद्धतिको मैं पसन्द ही नहीं करता। जब लड़का विवाह योग्य हो जाये तब लड़की चुननेका काम माँ-बापको ही करना चाहिए। इसीमें बुद्धिमानी है। और यह बात पच्चीस वर्ष या उससे भी ज्यादा बड़ी उम्रके लड़कोंपर भी लागू होती है। बेशक माँ-बापको लड़केके साथ सलाह तो करनी ही चाहिए।

६. [क्या "अश्वत्थामा मारा गया कहकर धर्मराजने पाप नहीं किया? भगवान्कृ ष्णने उन्हें ऐसा कहनेकी सलाह क्यों दी? ]

इससे मैं इतना ही सार निकालता हूँ कि धर्मराज-जैसे लोगोंसे भी भूल हो जाती है। अत: हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए। यदि हम ऐसा माने कि स्थूल रूपधारी श्री कृष्णने स्थूल रूपधारी युधिष्ठिरको ऐसी सलाह दी तो श्री कृष्णकी अपूर्णता मानने में कोई हानि नहीं है। किन्तु यदि हम श्री कृष्णको परमात्मा-रूप मानें तो हमें इस सारी कहानीका कुछ आन्तरिक अर्थ करना होगा। यह अर्थ हरएक व्यक्ति नीतिधर्मकी अपनी-अपनी कल्पनाके अनुसार निकालेगा। शास्त्रोंको सर्वथा सम्पूर्ण माननेकी जरूरत नहीं। यदि हम नीतिके अखण्ड नियम समझ लें और शास्त्रोंका अर्थ तथा उनका उपयोग इन नियमोंको ध्यानमें रखकर करें तो फिर भूल होनेकी सम्भावना नहीं रहती।

७. [ क्या यह आवश्यक है कि सारी दुनियाके लिए एक ही धर्म हो?]

सारी दुनियाके लिए कोई एक ही धर्म न तो कभी हो सकता है और न उसकी आवश्यकता है - मुझे तो ऐसा ही लगता है।

८. ऐसा कोई नियम नहीं है कि सभी प्रकारकी सात्विक खुराक हर स्थितिमें ली जा सकती है। जो खुराक मजदूरके लिए सात्विक है, वह क्षयके रोगीके लिए भी सात्विक होगी, ऐसा नहीं माना जा सकता।

मुझे अधिक समय नहीं है, किन्तु तुम्हारे एक पत्रका उत्तर पूरा हो गया। कुमारी श्लेसिनको लिखे अपने पत्रमें तुमने व्याकरणकी बहुत-सी गलतियां की है। मैंने छगनलालको उसकी नकल रखने के लिए कहा था। यदि छगनलालने नकल रखी है तो मैं उसे सुधार कर वापिस भेजूंगा।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६४६) से। सौजन्य: नारणदास गांधी