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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बात होगी। दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न भारतीयोंके सम्बन्धमें कहूँगा कि यदि मूल मसविदेमें वर्तमान अधिकारोंकी रक्षा की गई होती तो केपमें कोई प्रश्न न उठता। निश्चय, ही संघीय प्रवासी विधेयककी कोई सार्वजनिक मांग नहीं की गई थी। भारतीयोंकी कठिनाई ट्रान्सवाल प्रवासी विधेयकमें केवल संशोधन करके दूर की जा सकती थी। तब भारतीय केप, नेटाल और फ्री स्टेटके मुद्दोंको न उठाते जिन्हें अब संघ विधेयकपर विचार करते समय उठाना उनका कर्तव्य है। किन्तु यदि यूरोपीय जनता या सरकार चाहे कि जेल अथवा बदतर कष्टोंसे बचनेके लिए सत्याग्रही अपने भाइयोंके वर्तमान अधिकारोंको बेच दें तो वे ऐसा असम्मानजनक सौदा करनेसे इनकार कर देंगे। वर्तमान विधेयक साधारण विधेयक नहीं है जिसे संसद स्वतन्त्रतासे कानूनका रूप दे सके। यदि सरकार समझौतेकी शर्तोंका पालन करना चाहती है तो वह उन शोंके अनुरूप कोई विधेयक ही प्रस्तुत कर सकती है और यदि संसद उसे मंजूर न करे तो मेरी विनीत सम्मतिमें वह इसे वापस लेनेके लिए नैतिक दृष्टिसे बँधी है। मैं विश्वास करता हूँ जिस स्पष्टतासे मैंने अपने विचार प्रकट किये हैं उसके लिए मन्त्री महोदय मुझे क्षमा करेंगे। {{Right|गांधी} गांधीजीके स्वाक्षरोंमें संशोधित हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५८०७) की फोटो-नकल से।

६९. पत्र: जमनादास गांधीको

बैशाख वदी १० [मई ३०, १९१३][१]

चि० जमनादास,[२]

अपनी आशाके अनुसार मैं फिर तुम्हें पत्र नहीं लिख सका। इतना ज्यादा व्यस्त रहता हूँ। तुम्हारे दो पत्र आ चुके हैं, इसलिए लिख रहा हूँ। ज्यादा तो फिर भी नहीं लिख सकूँगा।

तुम्हारे पत्रमें मैंने कोई कठोर शब्द नहीं देखे।

यहाँसे मगनलाल या और कोई नहीं आ सकते। अतः मेरी समझमें नहीं आता कि तुम लड़ाईमें कैसे शामिल हो सकते हो। इस विषयमें अधिक समाचार तुम्हें

१.देखिए परिशिष्ठ ५(१)।

  1. २. मालूम पड़ता है कि यह पत्र जमनादास गांधीके दक्षिण आफ्रिकासे, दिसम्बर १९१२ में, भारत रवाना हो चुकनेके बाद लिखा गया था ।
  2. ३. गांधीजीके चचेरे भाई खुशालचन्द गांधीके पुत्र ।