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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


किसी भी रीतिसे सम्पन्न हुए विवाहोंको मान्यता देता है। वैसी ही व्यवस्था भारतीय विवाहोंके सम्बन्धमें होनेसे मामला हल होगा। बहुपत्नीक विवाहोंके बारेमें यह व्यवस्था जोड़ी जा सकती है कि कानून उन्हें मान्यता नहीं देगा। मैं नहीं समझा कि विधेयक नेटालके भारतीयों द्वारा तीन सालका नटाल अधिवासका प्रमाण देनेपर नेटाल में वापस आनेके हकको सुरक्षित रखता है या नहीं। समझौते में यह माना गया कि प्रवासी विधेयकमें कोई जातिभेद नहीं होगा। प्रस्तुत विधेयक इस शर्तको तोड़ता प्रतीत होता है क्योंकि इसमें दूसरोंके विपरीत भारतीयोंसे स्वविवरण देनकी शर्त है। यदि यह शर्त न हो तो फ्री स्टेटकी समस्या शायद हल हो जाये यद्यपि इस प्रकार प्रवेश करनेवाले भारतीयोंको जमीन रखने या व्यापार करने या खेती करने का अधिकार तो फिर भी नहीं होगा। आशा है आप समझौतेको अमलमें लाने के लिए प्रभावपूर्ण हस्तक्षेप कर सकेंगे और इस प्रकार सत्याग्रहका पुनरारम्भ रोकेंगे

गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५८०५) की फोटो-नकलसे।

६४. तार : गृह-मन्त्रीको

[फीनिक्स]
मई २७, १९१३[१]

गृह-मन्त्री
[केप टाउन]

सन्देशकी मैत्रीपूर्ण ध्वनिके लिए मन्त्रीको धन्यवाद देता हूँ। सत्याग्रह उल्लेखसे भावनाओंको ठेस पहुँचानेकी कोई इच्छा नहीं। कलके संशोधनसे विवाह-सम्बन्धी कठिनाई दूर न होगी, क्योंकि उसमें धार्मिक कृत्यके अतिरिक्त पंजीयनकी बात भी आती है। भारतमें विवाह दर्ज करानेकी प्रथा नहीं। मेरे कलके तारमें उल्लिखित ट्रान्सवाल-सम्बन्धी खण्डके आधारपर संशोधन करनेसे समस्या हल होगी। भारतमें वैध माने गये विवाह जहाँतक एक पत्नीका सम्बन्ध है यहाँ भी वैध माने जायें। यह सच है दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न भारतीयोंका जिक्र नहीं किया गया था। क्योंकि मेरी निगाह केप कानूनकी विशेष धाराकी ओर नहीं गई, किन्तु समझौता मेरे २२ अप्रैल १९११ के पत्रपर[२] और उसी तारीखके जनरल स्मट्सके

  1. १. यह तार ७-६-१९१३ के इंडियन ओपिनियनमें, प्रकाशित हुआ था और उसमें इसकी तारीख २८ मई बताई गई है । ऐसा सम्भव है कि गांधीजीने तारका मसविदा मई २७को तैयार किया हो, लेकिन उसे भेजा अगले दिन, यानी मई २८ को हो।
  2. २.देखिए खण्ड ११, पृष्ठ.३९-४१ ।