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3: द्वितीय वाचन होते-होते, २६ अप्रैलको ही भारतीय नारियोंने अपना तीव्र विरोध और सत्याग्रह छेड़ने का संकल्प घोषित कर दिया था। सरकार इस सबपर भड़क उठी; उसने कहा कि यदि भारतीय समाज अपनी धमकीपर अमल करेगा, तो सरकारको विवश होकर बिना लाग-लपेटके अपनी बात साफ-साफ करनी पड़ेगी। गांधीजीने खुलासा किया कि आन्दोलन इस बातका प्रयास होगा कि ब्रिटिश संविधानकी “ कल्पना में अपनी आस्था बनाये हुए" सत्याग्रही लोग " उसे चरितार्थ करनेके लिए संघर्ष करनेको या उस संघर्ष में मर मिटनेको तैयार हैं।” (पृष्ठ ७१ ) सुन्दर लगता है कि सरकारके रुखमें कुछ नरमी आई और वह केप तथा नेटालके कानूनोंके अन्तर्गत मौजूदा अधिकारोंको बहाल करने और कुछ बातों में प्रवासी विधेयकको संशोधित करनेपर राजी हो गई। परन्तु भारतीय विवाहोंसे सम्बन्धित अपने विचारों में थोड़ी भी रद्दोबदल करनेके लिए वह तैयार नहीं थी। गांधीजीने स्पष्टीकरण किया कि वे केवल भारतमें हिन्दू और मुसलमान धार्मिक विधिसे सम्पन्न हुए विवाहों को मान्यता दिलाना चाहते हैं। कानून में परिवर्तन करके उसे ट्रान्सवालके विवाह-सम्बन्धी कानूनके अनुरूप बनाया जा सकता है, जिसमें यूरोपीय विवाहोंको मान्यता दी गई है। सरकारने इसके लिए शर्त रखी कि तब भारतीयोंको विवाहके पंजीयन प्रमाणपत्र पेश करने चाहिए। गांधीजीने इसपर स्पष्ट कहा कि भारत में पंजीयनकी प्रथा न होनेसे न तो ऐसा सम्भव है और न आवश्यक ही, क्योंकि भारतमें विवाहकी विधियाँ समुचित सार्वजनिक समारोहके साथ सम्पन्न की जाती हैं। गांधीजीने प्रवासी विधेयकके संशोधनोंके लिए आग्रह करने में केप टाउनके चन्द यूरोपीय संसद सदस्योंकी मंत्री और सहानुभूति- पूर्ण भावनाओंका काफी उपयोग किया, लेकिन सरकारने जो संशोधन स्वीकार किये वे बहुत अपर्याप्त थे। गांधीजीने २ जूनको एक भेंटके दौरान घोषित किया कि यदि सरकार भारतीयोंकी माँगें नहीं मानती तो सत्याग्रह अनिवार्य हो जायेगा । लगता है कि सरकार सत्याग्रह फिर शुरू होने की सम्भावनासे काफी अधिक चिन्तित थी । संघके गवर्नर-जनरल लॉर्ड ग्लैड्स्टनने अपने एक गुप्त खरीतेमें उपनिवेश कार्यालयको लिखा था कि वह भारत सरकारको परिस्थितिकी गम्भीरता समझाये और इससे " गांधी तथा अन्य लोगोंपर अपना प्रभाव डालनेके लिए" कहे, जिससे कि संकट टाला जा सके। उन्होंने लिखा था कि वह तीन-पौंडी करको पूरी तौरपर रद कराने की भरसक कोशिश कर रहे हैं । जूनके प्रारम्भ में सरकारने केवल स्त्रियोंको करसे मुक्त करनेका फैसला किया। गांधीजीने बतलाया कि तीन-पौंडी कर रद करने का जो वचन गोखलेको दिया गया था उसमें स्त्री और पुरुषोंके बीच ऐसा कोई भेद नहीं किया गया था । प्रवासी विधेयक ११ जूनको पास हुआ और १३ जूनको गांधीजीने कहा कि यदि विधेयकपर सम्राट्की अनुमति मिलना नहीं रोका जाता और १९११के अस्थायी समझौते के सिलसिले में दिये गये आश्वासनको कार्यान्वित नहीं किया जाता तो स्त्री-पुरुष सत्याग्रह शुरू कर देंगे । १६ जूनको ब्रिटिश भारतीय संघने गवर्नर-जनरलसे औपचारिक रूपमें अनुरोध किया कि वह अधिनियमका अनुमोदन न करें । गांधीजीने मँडराते हुए संकटको टालनेकी एक आखिरी Gandhi Heritage Porta