पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/११३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७७
विधेयक


राज्यमें भी उसी प्रकार वैध माने जायेंगे जिस प्रकार उस माने जाते हैं जहाँ वे सम्पन्न हुए हों। और यदि किसी वारिस या अन्य सम्बद्ध पक्षों द्वारा ऐसे विवाहोंकी वैधतापर एतराज किया जाये तो किसी भी अदालतमें उक्त विवाहको पंजियों या प्रमाण-पत्रोंको पेश करके, बशर्ते कि उस देशमें ऐसे पंजियोंको रखने या प्रमाणपत्र देने की प्रथा हो, अथवा उनको प्रमाणित प्रतिलिपियाँ पेश करके या गवाहों द्वारा, या अन्य सभी साधारण मामलों में कानून द्वारा मान्य किसी दूसरे प्रमाणको उपस्थित करके उसकी वैधता सिद्ध की जा सकती है।

और ऐसे विवाहोंमें, अनुमानः बहुपत्नीक विवाह भी आ सकते हैं। और वे किसी भी विधिसे सम्पादित हो सकते हैं। तब फिर यही मान्यता भारतीय विवाहोंको क्यों नहीं दी जानी चाहिए?

फिर, यह स्पष्ट है कि श्री फिशरने जस्टिस गाडिनरके हालके फैसलेका अध्ययन नहीं किया है। उस फैसलेके अनुसार कोई भारतीय पत्नी, जबतक उसके विवाहका पंजीयन न हुआ हो, अपने पतिके विरुद्ध गवाही देनेकी जिम्मेदारीसे बरी नहीं है। कमसे-कम यहाँ बहुपत्नीक विवाहका सवाल खड़ा होनेकी कोई आशंका भी नहीं थी। पर तथ्य तो यह है कि जब श्री फिशरको किसी अटपटी स्थितिका सामना करना पड़ता है तब उन्हें किसी भी तरह सदनको धोखेमें डालने में संकोच नहीं होता।

प्रवासी विधेयक इस समय समितिके विचाराधीन है। हो सकता है, वह वहाँसे ऐसे रूपमें बाहर आये जिससे हमारी विवाह-सम्बन्धी माँगको छोड़कर अन्य सब मांगोंकी पूर्ति हो जाये। श्री फिशर विवाहवाली कठिनाईको प्रशासनिक रूपमें हल करना चाहते है। 'नेटाल मर्युरी' के संसदीय संवाददाताके शब्दोंमें, “प्रशासनिक समाधानके खिलाफ एतराज यह है कि उसके अधीन किसी अधिवासी भारतीयको बाहरसे पत्नी लानेका स्वाभाविक अधिकार, अधिकार न रहकर सरकारकी मेहरबानीका रूप ग्रहण कर लेगा और वह मेहरबानी भी एक अधिकारीके विवेक और उसकी सनकपर निर्भर करेगी।" हम श्री फिशरको चेतावनी देते हैं कि यदि यह एक सवाल भी बिना हल किये छोड़ दिया गया तो सत्याग्रहका पुनः आरम्भ किया जाना निश्चित है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-५-१९१३