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५४. पत्र : गृह-सचिवको[१]

[फीनिक्स
मई १९, १९१३][२]

महोदय,

मेरे पिछले माहकी ३० तारीखके पत्रके उत्तरमें भेजा गया आपका इसी ६ तारीखका कृपा-पत्र प्राप्त हुआ।

मैं देखता हूँ कि माननीय मन्त्री महोदय सत्याग्रहके उल्लेख-मात्रसे बुरा मानते हैं।[३] मुझे दुःख है; किन्तु उसका उल्लेख तथ्य बतानेके लिए अनिवार्य था। धमकी देनेकी कदापि कोई इच्छा नहीं थी। सत्याग्रहका पुनरारम्भ कोई धमकी नहीं है, बल्कि एक निश्चित बात है, लेकिन तभी जब दुर्भाग्यवश सरकार वर्तमान माननीय मन्त्रीके पूर्ववर्ती द्वारा दिये गये पवित्र वचनको पूरा करना असम्भव समझे या वह उसके लिए अनिच्छुक हों। वचन सरकारकी ओरसे दिया गया था और पिछले साल उसने उसे दुहराया भी था। संघ द्वारा उठाया गया प्रत्येक मुद्दा अस्थायी समझौतेकी शर्तोसे पैदा है। इसके अलावा, मैं यह कहने के लिए विवश हूँ कि मेरा संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है, उसको प्रभावित करनेवाले वर्तमान कानूनोंको अमल में लानेके मामले में सरकारने अबतक जो नीति अपनाई है वह नीति आपके पत्रमें व्यक्त इस समाजके प्रति सर्वथा न्यायपूर्ण व्यवहार करनेकी इच्छा" के बिलकुल विपरीत है। जो पत्नियाँ दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले अपने पतियोंके पास या जो बच्चे यहाँ रहनेवाले अपने माता-पिताओंके पास पहुँचना चाहते हैं, उनके साथ, तथा, जैसा कि नेटालमें होता है, जो लोग अपने पूर्व-निवासके आधारपर पुनः-प्रवेश करना चाहते हैं या, जैसा कि केपमें होता है, जो लोग अपने अनुपस्थितिके अनुमतिपत्रोंमें उल्लिखित अवधिके समाप्त हो जानेपर पुनः-प्रवेश करनेकी कोशिश करते हैं या जो ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके लिए अस्थायी अनुमतिपत्र चाहते हैं, उन सबके प्रति जो व्यवहार किया जाता है वह मेरे देशवासियोंके विचारमें न केवल अनुचित है, बल्कि कठोर और अन्यायपूर्ण भी है। यहाँ यह भी कह दिया जाये कि यदि ट्रान्सवालमे भारतीय समाजका अस्तित्व स्वर्ण-कानून और कस्बा-कानूनके सम्मिलित प्रभावके बावजूद मिट नहीं गया है तो इसका श्रेय सर्वोच्च न्यायालयको है, न कि सरकारको, जिसने अत्यन्त अनुदारतापूर्वक इन कानूनोंका

  1. १. यह पत्र श्री अ० मु० काछलियाके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था।
  2. २. मूल मसविदेपर कोई तारीख नहीं है । लेकिन इंडियन ओपिनियन में पत्रकी यही तिथि बताई गई है । पूरा पत्र-व्यवहार इंडियन ओपिनियन के २४-५-१९१३ के अंकमें प्रकाशित हुआ था।
  3. ३. गृह-सचिवने मई ९ को अपने पत्रमें लिखा था: “श्री फिशरको इस बातका खेद है कि प्रवासी विधेयकका उल्लेख करते समय आपके संघने तथा अन्य भारतीय संगठनोंने सत्याग्रह पुन: आरम्भ करनेकी धमकी देना उचित समझा।"