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4666 श्री भ २५ मह भूमिका गांधीजीके दक्षिण आफ्रिका - कालसे सम्बन्धित पुस्तक-मालाका यह अन्तिम खण्ड है । इसमें अप्रैल १९१३ से दिसम्बर १९१४ तक की सामग्रीका संग्रह किया गया है । अन्तिम सत्याग्रह- संघर्ष, स्मट्स-गांधी समझौता और उसके फलस्वरूप भारतीय राहत विधेयककी रचना और गांधीजीका मातृभूमि गमन इस कालकी मुख्य घटनाएँ हैं । केप सर्वोच्च न्यायालयके न्यायमूर्ति सर्लने १४ मार्च, १९१३को फैसला दिया था कि गैर-ईसाई विधिके अनुसार सम्पन्न या विवाह-अधिकारीके सामने अपॅजीयित भारतीय विवाहोंको दक्षिण आफ्रिका संघमें मान्यता नहीं दी जायेगी। इस फैसलेका नतीजा यह निकला कि हिन्दू और मुसलमान पत्नियोंका दर्जा एक तरह से रखल औरतोंका और उनकी सन्तानका दर्जा अवैध सन्तानका बन गया । उससे भारतीयोंकी धार्मिक भावनाको गहरी ठेस लगी । नये प्रवासी विधेयकका मौजूदा अधिकारोंपर बुरा असर पड़ा; उसने नई-नई निर्योग्यताएँ भी थोप दीं। नेटाल-भारतीयोंके अधिवास सम्बन्धी अधिकार गड़बड़ा गये; शिक्षित भारतीयोंकी पत्नियों और सन्तानको भी संघमें प्रवेश पाना मुश्किल हो गया । सन् १९११के अस्थायी समझौते (प्रॉवीजनल सेटलमेंट) में निहित समझौतेका सार तत्त्व ही था कि भारतीय प्रवासियोंपर ऐसी निर्योग्यताएँ नहीं थोपी जायेंगी जो अन्य जातियों, या संघके अन्य वर्गोंपर लागू होती हों । परन्तु हुआ यह कि प्रवासी विधे- यकने भारतीयोंपर खुद कानूनमें ही जातीय भेदभावसे युक्त बाधा लाद दी। गांधीजीने उसे दक्षिण आफ्रिकासे निवासी एशियाइयोंको निकालनेकी एक जानी-बूझी कोशिश के रूप में देखा । गांधीजीने अप्रैल १९१३ में गृह मन्त्रालयको जो अभ्यावेदन-पत्र भेजे थे उनमें इन बातोंपर जोर दिया गया था कि सर्ल-निर्णयके फलस्वरूप उत्पन्न विषम परिस्थितिका निराकरण संघके विवाह सम्बन्धी कानूनों में रद्दोबदल करके ही किया जा सकेगा; वर्तमान अधिकारोंको बहाल करनेके लिए प्रवासी विधेयकको संशोधित किया जाना चाहिए; तीन पौंडी कर हटा दिया जाना चाहिए; ट्रान्सवालके कानूनमें मौजूद जातीय भेदभावके दोषको दूर किया जाना चाहिए, और मौजूदा कानूनोंके अमलमें उदारतासे काम लेना चाहिए। गांधीजीने स्पष्ट कर दिया था कि यदि सरकार इन माँगोंको स्वीकार करनेमें असमर्थता प्रकट करेगी, तो भारतीय समाजको सत्याग्रहका सहारा लेना पड़ेगा। इस बारका आन्दोलन थोड़े ही समय चलेगा और उसकी गति तेज होगी। वह समूचे संघ में चलाया जायेगा और उसमें पहली बार नारियाँ भी सत्याग्रहियोंके रूपमें भाग लेंगी। भारतीय नारी जो युगोंसे अपनी सामाजिक परम्पराओंके कारण घरकी चार दीवारीके भीतर रहती आई थी सल-निर्णयकी चुनौती स्वीकार करनेके लिए तैयार हो गई और उसने सघर्ष में कूदनेका निश्चय कर लिया। प्रवासी विधेयकका