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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२०]

इसके सिवा बाथ लेनेका एक दूसरा तरीका भी है, जो अनेक रोगोंके लिए अक्सीर इलाज है। इसे “वेट शीट पैक" कहा जाता है। इसका भाषानुवाद होगा “गीली चादरकी लपेट"। इसे लेनेका तरीका इस प्रकार है। मनुष्य सीधा सो सके, इतना लम्बा एक टेबल या तख्त, जहाँतक हो सके, खुली हवामें रखे। इसपर चार कम्बल या हवाकी तेजीके अनुसार कम-अधिक कम्बल लटकाकर बिछा दिये जायें। इनपर ठंडे पानीमें भिगोकर निचोड़े हुए गाढ़े मोटे खादीके स्वच्छ वस्त्र बिछा दिये जायें। सिरहाने कम्बलके नीचे एक तकिया रहे। अब रोगी अपने सारे कपड़े उतार दे। यदि उसे कमरपर कोई छोटा-सा रूमाल या कपड़ा लपेटना हो तो लपेट सकता है। उपर्युक्त ढंगसे तैयार की गई चादरपर उसे चित्त लिटाइए। दोनों हाथ बगल में रहें और दोनों ओरसे चादर और कम्बल उसके शरीरपर, एकपर-एक लपेट दिये जायें। पैरों की ओरका हिस्सा पैरोंपर बराबर लिपटा रहे। यदि धूप हो तो रोगीके मुंह और सरपर भीगा रूमाल लपेट दिया जाये। नाक हर हालतमें खुली रखें। रोगी एक क्षणके लिए तो सिहर उठेगा, परन्तु तुरन्त ही बड़ा आराम और शरीरको भली लगनेवाली उष्मा भी महसूस करेगा। इस स्थितिमें रोगी ५ मिनटसे लेकर एक घंटे तक या अधिक भी रह सकता है। अन्तमें उसे इतनी अधिक गरमी लगने लगती है कि उसे पसीना छूटने लगता है। अनेक बार तो रोगीको इसी हालतमें नींद आ जाती है। रोगीको जब गीली चादरसे बाहर निकाला जाये तो उसे ठंडे जलसे नहला देना चाहिए। चमड़ीके तो अनेक रोगोंपर यह मुफीद इलाज है। खुजली, दाद, फुसियाँ, पित्ती, शीतला या साधारण फोड़े और बुखार आदिमें यह चादर लपेट बड़ा काम करती है। शीतला कैसी भी भयंकर क्यों न हो, इस इलाजसे प्रायः जाती रहती है। फोड़े हुए हों तो एक या दो बाथ लेनेसे ही वे भी अच्छे हो जाते हैं। इस बाथको लेने-लिवानकी प्रक्रिया बड़ी सरलतासे सीखी जा सकती है। और सभी अपने व्यक्तिगत अनुभवसे इसकी उपयोगिता आँक सकते हैं। यह बाथ लेनेपर चादरमें रोगीकी चमडीका सारा मैल उतर आता है; अत: एक बार उबलते हुए पानीमें धोये बिना उसे अन्य किसी रोगी व्यक्तिके लिए कदापि काममें नहीं लाना चाहिए ।

अन्तमें जलके इन उपचारोंके सम्बन्धमें इतना याद रखना जरूरी है कि यदि केवल बाथ ही लिये जायें और खुराक या कसरत आदिका ध्यान न रखा जाये तो सम्भव है, उससे सम्पूर्ण या कोई भी लाभ न हो। संधिवातवाला मनुष्य क्यूनीका बाथ या चादर लपेट तो ले किन्तु जो नहीं लेना चाहिए ऐसी खुराक लेता रहे, खुली हवाका सेवन न करें, गन्दगीमें ही पड़ा रहे और शरीरको व्यायाम न दे, तो वह अकेले स्नानसे आराम नहीं पा सकेगा। जलका यह उपचार स्वास्थ्यके दूसरे सारे नियमोंका पालन करनेके साथ ही सहायक हो सकता है। यदि अन्य नियमोंका भी साथ-ही-साथ पालन किया जाये तो पानीके इस उपचारसे रोगी बड़ी तेजीसे अच्छा होने लगता है, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-५-१९१३