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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्यूनीका कथन है कि पेटका दाह पेटको ठंडक पहुँचानेसे ही ठीक होगा। और उसके लिए वे बतलाते हैं कि पेट और उसके आस- पासवाले भागोंको ठंडक मिल सके, इतनी अच्छी तरह ठंडे जलसे स्नान (बाथ) लेना चाहिए। इस प्रकारके बाथ सहूलियतके साथ लिये जायें, उसके लिए उन्होंने टीनके विशेष प्रकारके टब ईजाद किये हैं; किन्तु उनके बिना भी हम अपना काम चला सकते हैं। पुरुष या स्त्रीके कदके अनुसार छत्तीस इंचके या उससे कुछ छोटे-बड़े टीनके पत्तरके लम्बे और अण्डाकार बर्तन मिलते हैं, वे क्यूनीका बाथ लेनेके लिए पर्याप्त हैं। ऐसे टबमें लगभग पौन हिस्से तक ठंडा पानी भर दिया जाये और फिर रोगीको उसमें इस प्रकार बिठा दिया जाये कि उसके पैर बाहरकी ओर एक तिपाईपर रहें और धड़ पानीके बाहर रहे-सिर्फ उसकी नाभिसे लेकर जांघों तक का भाग ही जलमें रहे। रोगीको जलमें एकदम नग्न होकर ही बैठना चाहिए। यदि उसे ठंड लगने लगे तो पैरों और सरपर कम्बल ओढ़ा देना चाहिए। वह कमीज आदि भी पहने रह सकता है और उसे पानीके बाहर ही रखा जा सकता है। यह बाथ ऐसे कमरे में लेना चाहिए जहाँ उजाला, हवा और धूप आती हो तथा बाथ लेते समय भी आ रही हो। टबमें बैठ जानेपर रोगी पानीके भीतर ही एक खुरदरा तौलिया पेड़पर हलके हाथसे फेरता रहे अथवा किसी दूसरेसे फिरवाये। इस प्रकार यह बाथ पाँच मिनटसे लेकर तीस मिनट या उससे भी अधिक समय तक लिया जा सकता है। ऐसे बाथसे अनेक बार तत्काल लाभ होता है। रोगीको यदि बादी हो तो उसे एकदम अपानवायु छूटने लगती है या डकारें आने लगती हैं। यदि बुखार हो तो पाँच मिनट बाथ लेनेके बाद ही थर्मामीटरका पारा एक-दो या अधिक डिग्री तक अवश्य नीचे उतर आता है। इससे पाखाना भी साफ होगा। थका हुआ हो तो उसकी थकावट उतर जायेगी। जिसे नींद बिलकुल ही न आती हो उसका मस्तिष्क शान्त हो जायेगा और उसे नींद आ जायेगी। जिसे तन्द्रा हो वह सजग हो जायेगा और उसमें चेतनता व्याप्त होगी। यों ऊपरी तौरसे देखते हुए इन्हें विरोधी परिणाम कह सकते हैं। पर कारण ऊपर आ ही चुका है। बड़ा आलस्य या अधिक जागृति एक ही निमित्तके दो भिन्न परिणाम है उनके बीच विरोध तो ऊपरी ही है। अतिसार या दस्त और बद्धकोष्ठ या कब्ज-- -दोनों ही अपचनके परिणाम है। कुछ लोगोंको उससे कब्ज हो जाता है तो कुछको पेचिश। इन दोनोंपर ही टब-बाथका बड़ा हितकर परिणाम होता है। बवासीर-जैसा अत्यन्त पुराना रोग भी इस प्रकारके कटि-स्नानसे और इसीके साथ खुराक सम्बन्धी उपचारोंसे मिट सकता है। मुंहसे यदि लार बहती हो तो इस उपचारके शुरू करनेसे यह शिकायत दूर हो सकती है। निर्बल मनुष्य कटि-स्नान लेनेसे सशक्त हो जाता है। कइयोंका संधिवात इससे मिट चुका है। रक्तस्त्रावके लिए यह बाथ बहुत लाभदायक है। इसी प्रकार रक्तविकारमें भी उपयोगी है। जिसका सर दर्द करता हो वह यह बाथ ले तो उसका सरदर्द एकदम हलका पड़ जायेगा। स्वयं क्यूनी तो इस बाथको कैसर-जैसे भयंकर रोगोंमें भी अमूल्य मानते हैं। गर्भवती स्त्री यदि यह बाथ ले तो उसे प्रसूतिके समय बहुत कम वेदना होगी। यह बाथ बालक, बूढ़ा, जवान, स्त्री, पुरुष सभी ले सकते हैं।