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५२. द्वितीय वाचन

यूनियनिस्ट (संघवादी) दलके एकमत होकर विरोध करनेपर भी प्रवासी विधेयकका द्वितीय वाचन बिना किसी मत-विभाजनके हो गया। यदि हम बोथा-मन्त्रि-मण्डलके तौर-तरीकोंसे परिचित न होते तो परिणाम हमें चकित करनेवाला लगता। माननीय श्री फिशरने यह वादा करके द्वितीय वाचन निर्विघ्न सम्पन्न करा लिया कि विधेयकमें सुधार करने के लिए विरोधी-दल जो-कुछ सुझाव पेश करेगा, उसपर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जायेगा; इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि इस कानूनके लिए हमें साम्राज्य-सरकारकी सामान्य स्वीकृति भी प्राप्त हो गई है। हम आशा कर सकते हैं कि समितिके स्तरपर इसपर बड़ी जोरदार बहस होगी और जबरदस्त संशोधन भी पेश किये जायेंगे। किन्तु सम्भव है, इससे हमारा उद्देश्य तनिक भी सिद्ध न हो। अपनी मांगोंकी पूर्ण स्वीकृतिके अलावा हम और किसी बातसे सन्तुष्न नहीं हो सकते ----सो इसलिए नहीं कि हम समझौता नहीं चाहते, बल्कि इसलिए कि बातका सम्बन्ध जहाँ जीवन-मरण या सम्मानसे हो, वहाँ समझौतेका कोई सवाल नहीं उठता। सत्याग्रही प्रतिज्ञाबद्ध हैं कि वे अपनी मांगोंकी पूर्तिके रूपमें कोई ऐसी बात स्वीकार नहीं करेंगे, जिससे वर्तमान अधिकारोंको धक्का लगता हो। वे कुछ ऐसी धातुके बने हुए हैं कि दूसरोंके अधिकारोंका सौदा करके अपनेको जेल-जीवनके कष्टोंसे बचानेकी बात सोच ही नहीं सकते ।

श्री फिशरकी भाषासे यह स्पष्ट है कि वे दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंको हमारे विरुद्ध उठ खड़ा होनेके लिए भड़काना चाहते है और हमें भी सत्याग्रह आन्दोलन चलानेको प्रेरित करना चाहते हैं। यद्यपि अधिकांश वक्ता विवादमें उनके विधेयकके विरुद्ध बोले और उन्होंने श्री फिशरसे सत्याग्रहियोंको सन्तुष्ट करनेका अनुरोध किया; फिर भी उन्होंने अकारण ही कह डाला कि सत्याग्रह आन्दोलनका खतरा सरकारको स्पष्ट व्यवहार" पर उतरने के लिए बाध्य कर सकता है। हम चाहते है कि सरकार स्पष्ट व्यवहारपर उतरे। निश्चय ही हम किसी प्रकारकी सन्दिग्धावस्था नहीं चाहते; और प्रवासी विधेयकमें सामान्य ढंगके नियमोंकी वकालत करके हम किसी ऐसी बातको प्रश्रय नहीं दे रहे हैं जिसे वाक्-छल कहा जा सके। हम तो इस प्रकार केवल ब्रिटिश संविधानके उस शानदार हिस्सेको बरकरार रखनेकी मांग कर रहे है जो इस बातकी अपेक्षा करता है कि किसी बुरी प्रथाको, वह चाहे कितनी भी प्रचलीत हो,कानूनमें स्थान नहीं दिया जायेगा। लॉर्ड ऍम्टहिलके शब्दोंमें, सिद्धान्त अच्छा होना चाहिए, फिर उसपर अमल करने में कोई असफल ही क्यों न रहे। सिद्धान्तकी दृष्टिसे सरल रेखा-जैसी कोई चीज नहीं खींची जा सकती। परन्तु सिर्फ इसी कारणसे कि हम कोई ऐसी रेखा खींचते हैं जो सर्वथा सरल न होकर पर्याप्त रूपसे ही सरल है, यह नहीं माना जा सकता कि हमने वाक्-छलका सहारा लिया, क्योंकि इस रेखाको खींचते समय भी हमारे सामने -सिद्धान्त रूपमें ही सही-वही सच्ची परिभाषा थी। अपने सिद्धांतको