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५१. पत्र: ड्रमंड चैपलिनको

[फीनिक्स
मई १४, १९१३]

प्रिय श्री चैपलिन,

श्री फिशरका वक्तव्य निश्चय ही अजीब है।[१] साम्राज्य-सरकारने विधेयकके पूरे मसविदेको कदापि न देखा होगा। मेरी रायमें, संघ-सरकारने पहलेकी तरह ही इंग्लैंडको उसका सार-संक्षेप भेजा होगा, जिसमें विवादास्पद धाराओंकी अपनी व्याख्या दी होगी। यदि ऐसा है, तो उसने छल करके साम्राज्य-सरकारकी मंजूरी ली है। जो भी हो, मैं कहना चाहता हूँ कि यदि मेरे पत्रमें[२] बताये गये वर्तमान अधिकारों में से किसी अधिकारमें खलल पड़ता है और विवाहोंके सम्बन्ध में कानूनी स्थिति जैसी सर्लके निर्णयसे पूर्व थी वैसी नहीं कर दी जाती, तो सत्याग्रह अवश्य फिरसे आरम्भ किया जायेगा और इस बार उसका स्वरूप निश्चय ही व्यापक होगा, अर्थात् यह कि वह ट्रान्सवाल तक सीमित नहीं रह सकता। आपने शायद यह भी देखा होगा कि विवाहोंका प्रश्न तय नहीं हुआ तो स्त्रियाँ भी संघर्षमें सक्रिय भाग लेंगी। मुझे विश्वास है कि आप इस मामले में इस स्पष्ट-लेखनका बुरा नहीं मानेंगे।

मैं आपको और यूनियनिस्ट (संघवादी) दलके नेताओंको विधेयकके दूसरे वाचनके समय सहानुभूतिपूर्ण भाषण देनेके लिए धन्यवाद देता हूँ और यह आशा करता हूँ कि आप और वे, विधेयककी शेष अवस्थाओंमें भी वैसे ही जागरूक रहेंगे। मेरा तो यही विचार है कि यदि सरकारने हमारी सब माँगें मंजूर न की तो सर्वोत्तम हल ट्रान्सवालके कानून में सुधार करना ही होगा।

आपका विश्वस्त

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५७८१) की फोटोनकल से।

  1. १. श्री फिशरने प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकको द्वितीय वाचनके लिए पेश करते हुए इस प्रस्तावित कानूनको तथा एशियाइयोंके प्रवेशको रोकनेके लिए बनाये गये दक्षिण आफ्रिकी सरकारके अन्य कानूनोंसे सही ठहराया था और कहा था कि भारतीयों तथा अन्य रंगदार लोगोंके बाहुल्यसे इस देशमें अनेक आर्थिक, सामाजिक, नैतिक एवं राजनीतिक समस्याएँ उठ खड़ी होंगी, क्योंकि भारतीय एक भिन्न सभ्यताका प्रतिनिधित्व करते हैं । विवाह-सम्बन्धी प्रश्नपर उन्होंने अपना फतवा देते हुए कहा था कि यहाँ तो वे ही विवाह मान्य होंगे जो रोमन-डच कानूनके अनुसार तथा दक्षिण आफ्रिकाकी अनुरूप रीतिसे सम्पन्न हों। उन्होंने यह भी बताया था कि विशेयकपर साम्राज्य-सरकारकी सामान्य स्वीकृति मिल गई है ।
  2. २. देखिए “पत्र : गृह-सचिवको", पृष्ठ २८-२९ ।