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५०. पत्र: भवानी दयालको
फीनिक्स
नेटाल
१२ मई, १९१३
तुम्हारा खत मीला है। सब तो छापने जैसा नहीं है। क्योंकि उसमें नयी बात या दलील नहीं है। इसलिये सत्याग्रह पसन्द करनेवाला भाग इं० ओ० में[२] दिया जावेगा।[३]उसका तरजुमा ईग्लीसमें करना उचित नहीं लगता है। इंग्रेजी वाचकवर्गके लिये तुम्हारा लिखान नहीं है। एक प्रति इं० ओ० का भेज दूंगा।
हिन्दु कोन्फरन्समें अगर 'स्वामी'को[४] निमंत्रण भेज देवे या तो यह कोन्फरन्स उसका भी आश्रय लेवे जो उसमें कुछ भी हिस्सा सुज्ञ हिन्दु नहीं ले सकते हैं।
मोहनदास गांधीके वंदेमातरम्
गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त हस्तलिखित मूल प्रति (सी० डब्ल्यू० ५७४३) से। सौजन्य : विष्णुदत्त दयाल
- ↑ १. इंडियन यंग मेन्स एसोसिएशन (भारतीय युवक संघ) के अध्यक्ष भवानी दयाल संन्यासीके नामसे बादमें ख्याति प्राप्त करने- वाले प्रसिद्ध आर्य समाजी प्रचारक, जिन्होंने प्रवासी भारतीयोंके लिए बहुत काम किया । जनवरी २८, १९१४ से लेकर कुछ समय तक उन्होंने इंडियन ओपिनियनके हिन्दी संस्करणका सम्पादन किया।
- ↑ २. इंडियन ओपिनियन ।
- ↑ ३. यह १७-५-१९१३ के अंकमें प्रकाशित किया गया ।
- ↑ ४. “स्वामी' से आशय सम्भवतः स्वामी शंकरानन्दसे है जो एक आर्यसमाजी प्रचारक थे और १९०८-१० में दक्षिण आफ्रिका गये थे। १९१३ में जब यह पत्र लिखा गया, उस समय भी वे. दक्षिण आफ्रिकामें थे । देखिए खण्ड ८ और ९ ।