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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१९]


कोई भी व्यक्ति, बिना किसी जोखिमके, कर सकता है। मनुष्यको यदि चक्कर आया हो, सन्निपात हो गया हो तो ऐसे समय में बर्फकी पट्टी सिरपर रखनेसे बीमारको राहत मिलती है। जिसे कब्जकी शिकायत रहती हो, ऐसे मनुष्यके पेटपर यदि बर्फसे भीगा कपड़ा लपेटा जाये तो पेट साफ हो जानेकी सम्भावना है। जिस मनुष्यको वीर्यपातकी बीमारी हो वह यदि अपने पेड़पर रोज ठंडे पानीकी पट्टी बांधकर सोये तो अनेक बार लाभ होता है। शरीरके किसी भी भागसे खून गिरता हो तो उस स्थानपर बर्फके पानीकी पट्टी रखी जान पर खून गिरना बन्द हो जायेगा। जिसे नकसीर फूटती हो, वह यदि लगातार ठंडे पानीके छींटे सिरपर दे तो जल्दी ही लाभ होगा। किसीको नाकका कोई रोग हो, जुकाम, कफ हो गया हो, जिसके सिरमें टीस उठती हो, ऐसा मनुष्य यदि दोनों समय नाकमें पानी चढ़ाये तो उसे अत्यन्त लाभ होगा। एक नथुनेको बन्द करके दूसरे नथुनेसे पानी चढ़ाया जा सकता है और तब बन्द किये हुए नथुनेसे उसे निकाला जा सकता है। और दोनों नथुनोंसे पानी चढ़ाकर गलेसे भी निकाला जा सकता है। वैसे यदि नाक साफ है और नाकसे चढ़ाया हुआ पानी पेटमें चला जाये तो भी उसमें भयकी कोई बात नहीं है। नाकमें पानी चढ़ाकर उसे साफ करनेकी आदत बहुत अच्छी है। जिसे इस प्रकार नाकसे पानी खींचनेकी कला न मालूम हो वह पिचकारीके सहारे पानी चढ़ा सकता है। परन्तु दो-चार बार ही प्रयत्न करने पर पानी खींचनेकी यह हिकमत सध जायेगी। इसे सीख लेना प्रत्येक मनुष्यके लिए जरूरी है, क्योंकि कई बार ऐसे सहज उपायसे ही सिरकी अनेक व्याधियाँ जल्दी दूर हो जाती हैं। नाकसे यदि बदबू आती हो तो भी यह इलाज कारगर है। कुछ लोगोंकी नाकमें छीछड़े पड़ते हैं, उसके लिए भी नाकसे पानी लेनेकी यह प्रक्रिया रामबाण है।

अनेक लोग एनिमा लेने में हिचकिचाते हैं। कइयोंका यह भी कहना है कि इससे शरीर निर्बल पड़ जाता है। किन्तु यह बिलकुल भ्रम है। एकदम पेट साफ करनेके लिए एनिमासे बढ़कर दूसरा कोई इलाज नहीं। ऐसे अनेक रोग हैं, जिनमें दूसरा कोई इलाज कारगर नहीं होता; लेकिन एनिमा उस हालतमें भी काम कर जाता है। इससे मल तो एकदम साफ ही हो जाता है, और शरीरमें नया जहर इकट्ठा नहीं हो पाता। जिसे बादी हो, वायु हो अथवा पेटकी खराबीके कारण और कोई रोग हुआ हो, उसे एनिमा द्वारा पौंड-भर पानी लेकर देखना चाहिए। उससे तत्काल ही इत्मीनान हो जायेगा। इस विषयमें एक मनुष्यने एक किताब लिखी है। अनेक उपचार किये जानेके बावजूद यह आदमी, बदहजमीसे मुक्त नहीं हो पाता था। उसका शरीर क्षीण हो चला था और पीला तथा निस्तेज पड़ता जा रहा था। एनिमा शुरू करनेके बाद उसकी भूख खुली और थोड़े ही समयमें उसकी तबीयतमें बहुत सुधार हो गया। कामला-जैसा रोग तो एनिमासे सहज ही नष्ट किया जा सकता है। हमेशा एनिमा लेना पड़े तो ठंडे जलका ही लेना ठीक होगा। गर्म जलका एनिमा बार बार लेनेसे निर्बलता आ जानेकी सम्भावना है; किन्तु यह दोष एनिमाका नहीं है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-५-१९१३