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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


देते हुए कहा कि मैं सोते समय एक प्याला और सबेरे उठनेपर भी एक प्याला गरम जल पीता हूँ, उसीसे मेरी ऐसी अच्छी तन्दुरुस्ती है। कई लोगोंको चाय पीनेके बाद ही हाजत होती है। अज्ञानवश ये लोग समझते हैं कि इसका कारण चाय है। परन्तु सच देखा जाये तो चाय तो नुकसान करती है; कारण तो वह गरम पानी है जो चायके साथ है।

भाप लेनके लिए खास ढंगकी चौखट होती है, किन्तु साधारण रूपसे उसकी जरूरत नहीं होती। बेंतकी एक कुर्सी या लकड़ीका स्टूल ले लिया जाये और उसके नीचे स्पिरिट या मिट्टीके तेलका चूल्हा या जलते हुए कोयले या लकड़ीकी सिगड़ी रख ली जाये। इसपर एक छोटा भगौना पानी भरकर रखा जाये और उसका मुंह ढक दिया जाये। कुर्सीपर एक कम्बल या लटकती चादर डाल दी जाये। यह वस्त्र सामनेके हिस्सेकी ओर इस प्रकार ढंका रहे कि बीमार सिगड़ी या भापसे जलने न पाये। फिर बीमारको कुर्सीपर बिठा दीजिए और उसके चारों ओर खादीका मोटा कपड़ा या कम्बल लपेट दीजिए। अब भगौनेका ढक्कन हटा दीजिए, ताकि बीमारको भाप लगने लगे। हम लोगोंमें तो बीमारका सिर भी ढक देनेका रिवाज है, किन्तु ऐसा करनेकी आवश्यकता नहीं है। शरीरमें जो गरमी आने लगती है वह सिर तक चढ़ जाती है और चेहरेपर पसीनेकी बूंदें झलक उठती हैं। यदि बीमारकी ऐसी हालत है कि वह उठ नही सकता तो उसे बेंतके या लोहेके पलंगपर लिटाकर भाप दी जाये। यदि इस प्रकार भाप दी जाये तो भी कम्बलोंको इस ढंगसे रखा जाये कि भाप या गरमी बाहर न निकल जाये। इस बातको सावधानी तो बराबर रखनी ही चाहिए कि बीमार कहीं जल न जाये; और न कम्बल आदि वस्त्र ही जल पायें। यदि बीमारकी हालत बहुत नाजुक हो तो उसे भाप देते समय थोड़ा विचार कर लेना चाहिए। भाप देने में जिस प्रकार फायदे है, वैसे ही नुकसान भी हैं। भाप लेनेके बाद मनुष्य सदैव निर्बल हो जाता है। यद्यपि यह निर्बलता अधिक देर तक नहीं टिकती, पर यदि कोई सदैव भाप लेनेकी आदत रखे तो वह मनुष्य अवश्य ही दुबला हो जाता है; अत: भापका प्रयोग अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। शरीरके किसी खास भागमें भी भाप दी जा सकती है; जैसे, यदि सिर दर्द कर रहा हो तो सारे शरीरको भाप देनकी जरूरत नहीं। केवल एक संकरे मुंहकी हाँड़ी या केटली में पानीको उबाला जाये और उसपर सिर रखकर उसे कपड़ेसे आधा ढक दिया जाये जिससे नथुनोंसे होकर भाप सिरमें चढ़ सके। यदि नाक बन्द हो गई हो तो इस प्रकार भाप लेनेसे झट खुल जाती है। यदि शरीरके अमुक भागमें सूजन हो तो उतने ही हिस्सेको भाप दी जाये।

साधारण रूपसे गरम पानी और भापके इन लाभोंके बारेमें अनेक लोग जानते है, किन्तु शीतल जलके फायदे जाननेवाले बहुत थोड़े लोग देखने में आते हैं। ठंडे जलमें जो लाभदायक परिणाम है वे गर्म जलमें नहीं । ठंडे पानीका परिणाम हमारे लिए प्राय: शक्ति प्रदान करनेवाला होता है, यह कहा जा सकता है। ठंडे जलका उपचार तो निर्बलसे-निर्बल मनुष्यके लिए भी किया जा सकता है। बुखारपर, शीतलाके लिए, फोड़ा-फुसी आदि चर्म-रोगोंके लिए पानीमें भीगी चादर लपेटनेका इलाज तो अक्सीर ही है। उसका परिणाम लगभग चमत्कारिक होता है। और इसकी आजमाइश तो