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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इनमें से अधिकतर महिलाओंने यह विचार दृढ़तापूर्वक प्रकट किया है कि यदि सरकार उनकी प्रार्थना स्वीकार न करेगी तो वे जेल जायेंगी। 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकोंको यह बात ज्ञात है कि संघकी अवैतनिक मन्त्री (कुमारी सोंजा श्लेसिन) भारतीय नहीं बल्कि यूरोपीय हैं। वे हमारे साथ बहुत समयसे काम कर रही है। वे इस प्रकार दक्षिण आफ्रिकाके अधिकांश यूरोपीयोंके एशियाई-विरोधी विद्वेषके विरुद्ध अपनी आपत्ति प्रकट कर रही है। वे भारतीय महिला संघके अवैतनिक मन्त्रीका काम उसकी स्थापनाके दिनसे ही कर रही हैं। कुमारी श्लेसिनको इस कार्यसे प्रेम है, किन्तु उन्हें अपना यह पद अच्छा नहीं लगता। उनका खयाल है कि इस पदको किसी भारतीय महिलाको सँभालना चाहिए। किन्तु वे यह भी मानती है कि उनकी भारतीय बहिनोंको अंग्रेजी भाषाका और दक्षिण आफ्रिकाकी राजनीतिका उतना ज्ञान नहीं है जितना उक्त संस्थाके, जिसका मार्ग-दर्शन और जिसकी सेवा वे स्वयं इतने दिनोंसे करती रही हैं, मन्त्रीको होना आवश्यक है । कुमारी श्लेसिन जो काम कर रही है उसकी योग्यता उन्होंने श्री गांधी कार्यालयमें रहनेसे और इस प्रकार सन् १९०६ में सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ होनेके दिनसे ही, उस आन्दोलनके निकट सम्पर्क में आनेसे, प्राप्त कर ली है। कुमारी श्लेसिन, दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके हितार्थ काम करनेवाले यूरोपीय कार्यकर्ताओंके समान यह सिद्ध करती है कि मानव-प्रकृति समान है, चाहे मनुष्यकी चमड़ी गेहुँआ हो या गोरी; और दक्षिण आफ्रिका भी तटस्थ लोगोंसे रहित नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-५-१९१३

४८. स्त्रियोंका प्रस्ताव

विवाहके जिस सवालने पिछले कई सफ्ताहोंसे हमारे देशभाइयोंको आन्दोलित कर रखा है, उसके सम्बन्धमें जोहानिसबर्गकी भारतीय स्त्रियों द्वारा पास किया गया महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव सत्याग्रह आन्दोलनमें एक नये मोड़की ओर संकेत करता है। यह प्रस्ताव श्री फिशरको बाकायदा तार[१]द्वारा भेजा जा चुका है, और यदि मन्त्री महोदय अब भी सर्ल-निर्णयसे उत्पन्न शिकायतकी आग्रहपूर्वक उपेक्षा करें तो अब यह जान-बूझकर किया गया कहलायेगा। वे विश्वास करें कि भारतीय स्त्रियाँ जेल जानेको लालायित नहीं है, और न समाजके पुरुष अपनी स्त्रियोंकी जेल-यात्राकी सम्भावनाको शान्ति-भावसे देखते हैं। इसलिए, यदि भारतीय महिलाएँ सत्याग्रह करें तो उनके मनमें निश्चय ही कोई ऐसी शिकायत होनी चाहिए जो, कमसे-कम उनकी निगाहमें, बहुत गम्भीर है। हम अपनी इन वीर बहनोंको बधाई देते हैं, जिन्होंने सर्ल-फैसलेके अपमानको स्वीकार करनेकी अपेक्षा सरकारसे युद्ध करनेका साहस किया है। यदि वे अन्ततक अपने निश्चयपर दृढ़ रहीं तो अपना, अपनी जन्मभूमिका, और सच पूछिए तो उस

  1. १. देखिए पिछला शीर्षक ।