आवश्यक समझें तो भेटके लिए एक दिन नियत कर दें; मैं चला आऊँगा और यह मामला अन्तिम रूपसे निबटाया जा सकेगा।[१]
आपका सच्चा,}
मो० क० गांधी
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५५२१) की फोटो-नकल, और २७-५-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से।
५०. प्रार्थनापत्र : उपनिवेश-मन्त्रीको[२]
जोहानिसबर्ग
मई १,१९११
लन्दन
ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष अ० मु० काछलियाका प्रार्थनापत्र सविनय निवेदन है कि :
पिछले चार वर्षोंसे एशियाइयोंकी कानूनी स्थितिको लेकर जो दुःखद संघर्ष चलता रहा है, अब उसके सुखद अन्तके आसार दिखाई देते हैं। किन्तु, साम्राज्य-सम्मेलनकी बैठकको निकट देखते हुए ब्रिटिश भारतीय संघ महामहिमकी सरकारका ध्यान ट्रान्सवालवासी ब्रिटिश भारतीयोंकी वास्तविक मौजूदा स्थितिकी ओर आकर्षित करनेकी धृष्टता करता है।
एशियाई पंजीयन अधिनियम (१९०७ के कानून २) के पास होनेके कारण जो संघर्ष छिड़ा उसने ट्रान्सवालकी एशियाई कौमोंको इतने कष्टमें डाल दिया, और एशियाई तथा यूरोपीय, दोनों समुदायोंके लोग उसीमें इतने उलझे रहे कि संघके लिए उन निर्योग्यताओंको दूर करानेका प्रयत्न करना सम्भव नहीं हो पाया जो अनाक्रामक प्रतिरोधके दायरेमें नहीं आती थीं; इन निर्योग्यताओंमें से कुछ तो संघर्ष प्रारम्भ होने के समय मौजूद थीं, और कुछ बादमें थोप दी गई थीं।
पंजीयन और प्रवासी कानूनोंके सम्बन्धमें वर्तमान स्थिति
अप्रैल २२ को जनरल स्मट्सके निजी सचिवने श्री गांधीके नाम एक पत्र[३] लिखा था। उसके अनुसार २७ अप्रैलको ब्रिटिश भारतीयोंकी एक सभामें[४] कुछ प्रस्ताव पेश
- ↑ लेनने १-५-१९११को उत्तर भेजा, जिसमें उन्होंने पत्रोंकी प्राप्ति स्वीकार करते हुए लिखा: "आपने जिन-जिन बातोंका जिक्र किया है समिति उनपर विचार कर रही है। शेष बातें आपको यथासमय लिखी जायेंगी। " देखिए परिशिष्ट ५ और ६
- ↑ यह १३-५-१९११के इंडियन ओपिनियनमें “वर्तमान स्थिति" शीर्षकसे प्रकाशित किया गया था।
- ↑ देखिए, परिशिष्ट ४ ।
- ↑ देखिए “ट्रान्सवालकी टिप्पणियों", पृष्ठ ५६-५८ ।