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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


नहीं मिलता जिसमें किसी जन-संगठनने अन्यायके प्रतिकारके लिए स्वयं कष्ट सहनेका मार्ग अपनाया हो, किन्तु ट्रान्सवालके इस आन्दोलनमें यही किया गया है।

श्री गांधीने ट्रान्सवालके अनाक्रामक प्रतिरोधकी तुलना हजरत डॅनियलके उस अन्तःकरण-प्रेरित प्रतिरोधसे की जो उन्होंने मीडियों और पारसियोंके न्यायके खिलाफ इसलिए किया था कि उनकी रायमें वह धर्म और विवेकके प्रतिकूल था। उन्होंने अपने देशवासियोंसे अपनी माँगें सदैव विवेकपूर्ण रखनेका आग्रह किया और कहा कि पूरे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजने आम तौरपर बराबर यूरोपीय दृष्टिकोणको समझनेको कोशिश की है। यद्यपि उनका संघर्ष कानूनी समानताको प्राप्तिके लिए है, फिर भी रूढ़ पूर्वग्रहको देखते हुए वे इस बातको मानते हैं कि उसमें व्यावहारिक अन्तर रहेगा ही और इसे भारतीय समाजको अपने उदात्त आचरणसे धीरे-धीरे कम करना पड़ेगा। उन्होंने अपने श्रोताओंसे कहा कि समझौतेकी इस विजयपर वे फूल न जायें, बल्कि ट्रान्सवालके असंख्य भारतीयोंने जो वीरतापूर्ण संघर्ष किया है, इसे वे उसीका सहज परिणाम समझें। श्री थम्बी नायडूका[१] बड़ा ही प्रशंसापूर्ण उल्लेख करते हुए वे बोले कि मेरी दृष्टिमें इस कठिन संग्रामके वे एक सबसे बड़े अनाक्रामक योद्वा हैं। (करतल ध्वनि)

भारतीय संघके अध्यक्ष श्री डॉसनने श्री गांधीके सम्मानमें धन्यवादका प्रस्ताव पेश किया, जिसका समर्थन आफ्रिकी राजनीतिक संघके भूतपूर्व मन्त्री श्री जोशुआने किया। श्री गांधीने संक्षेपमें धन्यवादका उत्तर दिया और महापौरके प्रति धन्यवादका प्रस्ताव रखा, जिसे सम्पूर्ण श्रोताओंने खड़े होकर स्वीकार किया।

[अंग्रेजीसे]

डायमंड फील्ड ऐडवर्टाइज़र, २५-४-१९११

  1. थम्बी नायडू; मॉरिशसमें उत्पन्न एक तमिल व्यापारी, जो गांधीजीके शब्दोंमें “शेरके समान"ये और अगर उनके स्वभावमें तनिक उद्धृतता नहीं होती तो वे ट्रान्सवालके भारतीय समाजके नेता हो सकते थे।" उन्होंने अनाक्रामक प्रतिरोधमें बड़े उत्साहसे भाग लिया और बादमें तमिल कल्याण समितिके अध्यक्ष हुए, । देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २०