महोदय, परिशिष्ट २५ गांधीजीके नाम गृह-सचिवका पत्र दक्षिण आफ्रिका संघ, गृह विभाग केप ऑफ गुड होप अप्रैल ४, १९१३ आपके पिछले महीनेकी २४ तारीखके पत्रके सम्बन्धमें गृह मन्त्रीने मुझे यह कहनेका आदेश दिया है कि कुछ चुने हुए ब्रिटिश भारतीयों को ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके अनुमतिपत्र देनेके बारेमें कुछ दिन पहले आपने जो सवाल उठाया था, उसपर वे गौर कर रहे हैं। श्री फिशरका विचार है कि इस मामलेमें आप ट्रान्सवालके भारतीय समाजके उस वर्ग के लोगोंका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो गत तीन-चार वर्षोंसे " सत्याग्रही " के रूपमें विख्यात है, और मन्त्री महोदयका खयाल है कि आपने उन्हीं लोगोंके लिए अनुमतिपत्र जारी करनेकी सिफारिश की है जिनके हित न्यूनाधिक समाजके इस विशेष वर्गसे मिलते-जुलते हैं । मन्त्री महोदय यह देख सकनेमें असमर्थ हैं कि कहीं भी ऐसी कोई बात निहित है अथवा स्वीकार की गई है कि इस मामले में आप ट्रान्सवालकी समस्त एशियाई आवादीका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, और वस्तु-स्थिति चूँकि ऐसी है, इसलिए आप जो रुख अख्तियार कर रहे हैं उसे वे कुछ समझ नहीं पा रहे हैं। सही स्थिति यह है कि जब शिक्षित ब्रिटिश भारतीयोंको ट्रान्सवालमें बसे अपने देशभाइयों के लाभ के लिए प्रति वर्ष एक सोमित संख्या में यहाँ प्रवेश करनेकी अनुमति देनेके प्रश्नपर विचार किया जा रहा था तब सरकारने वचन दिया था कि वह प्रति वर्षं ऐसे छः लोगोंको प्रवेश करनेकी अनुमति देगो; किन्तु, ऐसा कुछ तय नहीं हुआ था कि ये छः के-छः आपके द्वारा मनोनीत लोग ही होंगे । किन्तु अब आप स्पष्ट ही इसी बातको सिद्ध करनेकी कोशिश कर रहे हैं । जैसा कि मैं अपने १५ जनवरीके पत्र में आपको बता चुका हूँ, ट्रान्सवालके भारतीय समाजके विभिन्न वर्गोंने सन् १९१३ में प्रवासी अधिनियमसे विशेष रूपसे बरी किये जानेके लिए बाईस नाम पेश किये, और जो अनुमतिपत्र जारी किये जानेवाले हैं, उनमें प्रत्येक वर्गको यथासम्भव कुछ-न-कुछ हिस्सा देनेके विचारसे श्री फिशरने अनुमतिपत्रोंकी संख्या छः से बढ़ाकर दस कर देनेका निर्णय किया । और ऐसा करते हुए उन्होंने आपके द्वारा दिये गये छः नामोंमें से चारको स्वीकार कर लिया और उन्हें जो अन्य सोलह नाम दिये गये थे उनमें से छः पर स्वीकृति दी । उनके इस निर्णयका आधार यह था कि आप एशियाई आवादीके एक बड़े भागकी ओरसे बोल रहे थे; किन्तु, जहाँतक उन्हें मालूम है, आप समस्त ब्रिटिश भारतीय आबादीकी ओरसे नहीं बोल रहे थे । किन्तु, यह स्पष्ट है कि इस विषय में आपके और सरकारके बीच एक गलतफहमी रही हैं, और इसलिए मन्त्री महोदय आपके द्वारा पेश किये गये दो नामोंको स्वीकार करनेके सम्बन्धमें अब और कोई आपत्ति नहीं उठायेंगे । फिर भी एक बात समझ लेनी चाहिए । यहाँ अनेक संघ और समितियाँ पहले से ही मौजूद हैं, और कारण नहीं कि आगामी वर्षोंमें उनकी संख्या में वृद्धि नहीं होगी । किन्तु, इनमें से किसी भी संस्थाके द्वारा, या उसकी ओरसे, शिक्षित ब्रिटिश भारतीयोंको इस उपनिवेशमें प्रवेश देनेके लिए भविष्य में जो प्रस्ताव रखे जायेंगे, सरकार उन्हें निर्विवाद रूपसे स्वीकार कर लेनेके लिए अपने-आपको किसी तरह बाँध नहीं सकती | सरकारने इन लोगोंको एक निश्चित संख्या में प्रति वर्ष प्रवेश देनेका वादा Gandhi Heritage Porta
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६१७
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