परिशिष्ट ५७७ काम लेंगे। मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में दक्षिण आफ्रिकामें जो कुछ होगा, उसमें हम अधिक दिल- चस्पी लेंगे, और वहाँके घटनाक्रमपर अधिक सतर्कतासे निगाह रखेंगे, ताकि हमारे दक्षिण आफ्रिकी देश- भाइयोंको यह अनुभूति हो सके कि हम एक होकर दृढ़तापूर्वक उनके साथ डटे हुए हैं। मैं यह आशा भी करता हूँ कि हम पहलेसे काफी अधिक धन एकत्र करके उन्हें भेजेंगे। याद रखिए कि इस लम्बे संवर्षके कारण आर्थिक तथा अन्य दृष्टियोंसे भी वहाँके भारतीय समाजकी शक्ति निश्शेष हो चुकी है । यह भी याद रखिए कि सहायताको आवश्यकता इस अत्यन्त असाधारण संघर्षको चलानेके लिए ही नहीं है, बल्कि भारतीय समाजके बच्चोंके नैतिक तथा भौतिक उत्कर्षके लिए शैक्षणिक तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान करनेके लिए भी है । और अन्तमें याद रखिए यह कि उक्त संघर्ष मात्र दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजके हितोंसे ही नहीं, साम्राज्यमें एक राष्ट्रको हैसियतसे हमारे पूरे भविष्यसे सम्बद्ध है । अतः हम इस बात में अपने कर्त्तव्यका जिस हद तक निर्वाह करेंगे, उसी हद तक हम इस साम्राज्यमें एक सभ्य समाजके आत्मसम्मानके उपयुक्त पदकी ओर प्रगति करेंगे । और हम जिस अनुपात में इस कर्तव्यको निभायेंगे, उसी अनुपात में अपने देशके आशार्वाद और अपनी भावी सन्ततिकी कृतज्ञताके पात्र होंगे । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, २५-१-१९१३ और १-२-१९१३ परिशिष्ट २४ सिल्बर्न और एफ० सी० हॉलेंडरको गोखलेका उत्तर (क) समझता बहुतों का ११ नवम्बर, १९१२ को डर्बनमें श्री गोखलेके सम्मान में आयोजित प्रीतिभोजमें बोलते हुए सिल्वर्नने कहा था कि इस देश में श्री गोखलेकी पात्राको मैं ध्यानसे रहा हूँ और मेरी समझमें उन्हें वास्तविक स्थितिके सम्बन्धमें बहुत कम बताया गया है । खयाल है कि ब्रिटिश और बोअर लोग उनके देशभाश्योंके प्रति वैर-भाव रखते हैं, किन्तु बात ऐसी है नहीं । निस्संदेह एक राजनीतिज्ञकी हैसियतसे मैं मानता हूँ कि भारतीय कुछ कष्टोंसे पीड़ित हैं । मैं यह भी मानता हूँ कि उन कष्टों को जितना जल्दी हो सके दूर कर देना चाहिए और मैं स्वयं तीन पौंडी करको हटाने में पूरी सहायता करूँगा; किन्तु यह स्मरण रहे कि वतनियोंको लेकर हमारे सामने एक बहुत ही कठिन प्रजातीय समस्या उपस्थित है, और किसी तीसरे पक्षको बीचमें लानेसे सवालके सुलझने के बजाय और अधिक उलझ जानेकी सम्भावना है । इसके अलावा, इस सवालका निपटारा उन्हीं लोगोंको करना है, जो यहाँ रहते हैं, और मैं श्री गोखलेसे अनुरोध करूँगा कि वे भारत वापस जाकर भारत तथा इंग्लैंड की सरकारोंको सूचित कर दें कि इस समस्याका समाधान दक्षिण आफ्रिकामें होना है, और इस देशके ब्रिटिश लोग ग्रेट ब्रिटेन अथवा भारतकी ओरसे किसी प्रकारका हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगे । (' आनरेबल मि० गोखलेज विजिट टु साउथ आफ्रिका, १९१२, पृष्ठ ३७) श्री गोखलेने अपने भाषण में उसका उत्तर देते हुए कहा था कि “मुझे इंग्लैंडके इतिहास और परम्पराका पर्याप्त ज्ञान है और उसके आधारपर मैं महसूस करता हूँ कि यदि अंग्रेज लोगोंसे कुछ प्राप्त करना है तो वह इन तरीकोंसे नहीं, बल्कि उनकी ईमानदारी और न्यायको भावनाको जगाकर ही प्राप्त किया जा सकता है । तो कमसे कम में कभी ऐसा कुछ नहीं कर सकता जिससे एक स्वशासित उपनिवेशके अधिकारोंमें कोई कमी आये । किन्तु, स्थिति विचित्र है । भारत सरकार दक्षिण आफ्रिकी सरकारसे सीधे कुछ नहीं कह ११-३७ ... Gandhi Heritage Portal
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