५७६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय किसी भी कीमत पर छुटकारा पानेके लिए और भी कृत-संकल्प हो जाते और परिणाम होता उस उपमहाद्वीप से अन्ततः भारतीयोंको निकाल देनेकी प्रक्रियाको बढ़ावा देना। जहाँतक श्री गांधीके विरुद्ध आरोपका सम्बन्ध है, वह वास्तविक तथ्योंके साथ उपहास करना है । आखिर साम्राज्य में समान व्यवहारके हमारे अधिकार आज मुख्यतः सैद्धान्तिक ही तो हैं। लेकिन उन्हें सैद्धान्तिक रूपमें भी अक्षुण्ण बनाये रखनेके लिए श्री गांधी चार बार जेल गये और उन्होंने अपने सैकड़ों देशभाइयों को भी ऐसा करनेके लिए प्रेरित किया । इसमें सन्देह नहीं कि ये सैद्धान्तिक अधिकार धीरे-धीरे ऐसे अधिकारोंके रूपमें परिवर्तित हो जायेंगे, जिनका हम सचमुच व्यवहारमें उपभोग करने लगेंगे; किंन्तु यह तो धीरे-धीरे ही होगा और यह बहुत कुछ इस बातपर निर्भर करता है कि स्वयं भारत में हमारी स्थिति कितनी-क्या सुधर पाती है । मौजूदा आसार उपसंहारमें श्री गोखलेने कहा : देवियो और सज्जनो, इससे पहले कि मैं बैठूं, आप पूछ सकते हैं कि इस समय दक्षिण आफ्रिकामें क्या आसार नजर आते हैं। तो सुनिए । दक्षिण आफ्रिकामें हमारी शिकायतोंकी सूची इतनी लम्बी है जैसा कि हमारी मुलाकात के दौरान जनरल बोयाने कहा था, कि आज दक्षिण आफ्रिकामें शक्तिशालीसे शक्तिशाली जिस मन्त्रिमण्डलकी कल्पना की जा सकती है, उसमें भी उन सारी शिकायतोंको एकाएक दूर कर सकनेकी शक्ति नहीं है, और यदि उसने ऐसा कोई प्रयास किया तो उससे तुरन्त सत्ता छीन ली जायेगी । परिस्थिति ऐसी है कि यद्यपि हमें निरन्तर संघर्ष करते रहना चाहिए; और फलके रूपमें इससे अधिककी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि धीरे-धीरे, किन्तु निश्चय ही, हमारी दशामें सुधार होता जायेगा। लेकिन, मेरा खयाल है, कुछ बातों में तो शीघ्र ही राहत मिलेगी । मुझे पूरी आशा है श्री गांधी और जनरल स्मट्सके बीच सत्याग्रह आन्दोलन से सम्बन्धित जिस अस्थायी समझौतेको सरकार संसदके पिछले अधिवेशनमें पास करानेमें असमर्थ रही थी, उसे वह इस साल पास करा लेगी । मेरा खयाल है, प्रवासी कानूनके अमलमें भी शीघ्र ही अधिक नरमी और लिहाज बरता जाने लगेगा । इसके सिवा मुझे पूरी आशा है कि इस वर्षं क्षोभकारी तीन पौंडी परवाना-कर भी उठा दिया जायेगा । यों तो मन्त्रियोंने मुझे यह कहनेका अधिकार दे दिया है कि वे इस शिकायतको यथासम्भव शीघ्रसे- शीघ्र दूर करनेके लिए भरसक कुछ उठा नहीं रखेंगे । शिक्षा के क्षेत्रमें भी स्थितिके काफी सुधरनेकी सम्भावना है, और स्वर्ण-कानून तथा कस्वा अधिनियम-जैसे कानूनोंका प्रशासन उत्तरोत्तर कम कष्टप्रद होता जायेगा । किन्तु, मुझे भय है कि एक बातमें स्थितिमें जल्दी कोई सुधार नहीं होगा, और सम्भव है, सुधरनेसे पहले एक बार यह स्थिति और भी बिगड़ जाये । मेरा मतलब व्यापारिक परवानोंकी बातसे है । किन्तु, इस मोर्चे पर हमारा समाज केवल न्यूनतम न्यायके लिए लड़ रहा है । और इस लड़ाईमें उसे न केवल भारत सरकार और साम्राज्य सरकारको सहानुभूतिका बल प्राप्त है, बल्कि दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय समाजके अपेक्षाकृत अधिक विवेकशील लोगोंकी हमदर्दी भी उसके साथ है। यदि हम यहाँ, स्वदेशमें अपने कर्तव्यका भली-भाँति पालन करें तों वहाँ इस संघर्ष में हमारे भाई अवश्य विजयी होंगे। मैं इस विषयकी थोड़ी चर्चा करके अपना भाषण समाप्त करूँगा । देवियो और सज्जनो, मेरा यह दृढ़ मत है और इंग्लैंड तथा दक्षिण आफ्रिकामें भी हमारे पक्षसे सहानुभूति रखनेवाले बहुतसे लोग यही मानते हैं – कि अबतक भारतने समुद्र-पारके अपने उन सपूतोंके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन नहीं किया है, जो इसके सम्मानकी रक्षा लिए असाधारण कठिनाइयोंके बीच संघर्ष कर रहे हैं । यह सच है कि हममें से एक व्यक्ति - मेरे मित्र श्री रतन टाटाने एक महान् और शानदार उदाहरण पेश किया है, और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि दक्षिण आफ्रिकाका भारतीय समाज उन्हें अत्यन्त स्नेह और कृतज्ञताके भावसे देखता है । मद्रासी एक समितिने भी कुछ काम किया । और यहाँकी समितिने भी कुछ चन्दा जमा किया है, किन्तु इस समस्या से जो बड़े-बड़े प्रश्न जुदे हुए हैं, उन्हें देखते हुए यह सभी बहुत थोड़ा है। फिर भी, मुझे आशा है कि अतीत में हमने कितनी भी लापरवाही क्यों न दिखाई हो, अब हम इस दिशामें अधिक जागरूकतासे - Gandhi Heritage Porta
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