1 परिशिष्ट ५७३ नई बस्तियोंमें जानेको मजबूर कर देते हैं जो व्यापारिक दृष्टिसे और भी अनुपयुक्त स्थानोंमें स्थित होती हैं । मैंने स्वयं ऐसी अनेक बस्तियोंका निरीक्षण किया, और उसके आधारपर मैं केवल यही कह सकता हूँ कि उनसे सम्बन्धित सारी नीति तीव्रतम भर्त्सना योग्य है । इस प्रकार आप लोग देख सकते हैं कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय व्यापारियोंका मन कितना अधिक अशान्त और चिन्ताग्रस्त है। श्रमिक वर्गको अन्य निर्योग्यताएँ तो झेलनी पड़ती ही हैं, उन लोगोंकी अपनी एक खास मुसीबत भी है - ३ पौंडी परवाना-कर; इसके कारण उन्हें अकथनीय कष्ट सहने पड़ते हैं। मैं निःसंकोच होकर कह सकता कि इससे अधिक क्रूरतापूर्ण करकी कल्पना नहीं की जा सकती। इसके अन्तर्गत १९०१ के बाद अपनी गिरमिटकी अवधि पूरी करनेवाले सभी गिरमिटिया भारतीयों और उनकी सन्तानोंको ३ पौंडका वार्षिक कर देना पड़ता है, और इस वर्गके १६ सालसे अधिक उम्रके सभी पुरुष और १३ सालसे अधिक उम्रकी सभी स्त्रियाँ इस करकी देनदार हैं । कर नहीं देनेपर उन्हें सख्त कैदको सजा दी जाती है । किसी भी कानूनके अन्तर्गत एक १३ सालकी लड़कीको प्रतिवर्ष ३ पौंडका कर राज्यको देना पड़े और न देनेपर उसे सपरिश्रम कारावासकी सजा भोगनी पड़े, इस कल्पना मात्रसे भय लगता है। यदि आप किसी साधारण से परिवारकी बात लें, जिसमें माता-पिताके अलावा १३ और १५ सालको दो लड़कियों हों और दो छोटे बच्चे, तो आप पायेंगे कि उस परिवारको सिर्फ नेटाल उपनिवेशमें रहने-भर की अनुमतिके लिए प्रतिवर्ष १२ पौंड चुकाना पड़ता है - • और सो भी तब, जब उस पुरुष और स्त्रीने गिरमिट प्रथाके अन्तर्गत उस उपनिवेशको समृद्धिके लिए पाँच साल तक श्रम किया है । अब हम उस पुरुषका माहवारी पारिश्रमिक लगभग २५ शिलिंग मान सकते हैं और वह स्त्री अपनी दो लड़कियोंके साथ, घरका काम-काज देखनेके बाद, कुल मिलाकर प्रतिमास कोई १६ शिलिंग कमा सकती हैं। तो उस परिवारको कुल मासिक आय २ पौंडकी हुई । उसमें से १ पौंड, पानी आधी रकम तो इस घृणित परवाना करके लिए दे देनी है। और उसके बाद उन्हें मकान भाड़ा देना है, भोजन-वस्त्रका प्रबन्ध करना है और समाजपर सामान्य रूपसे लगे "अन्य करोंका भुगतान करना है। फिर क्या आश्चर्य, यदि दो वर्ष पूर्वं नेटाल विधान मण्डलके एक प्रमुख सदस्यने खुले आम कहा कि इस करने कितने ही परिवारोंको छिन्न-भिन्न कर दिया है, कितने ही पुरुषोंको जरायमपेशा बना दिया और कितनी ही स्त्रियोंको लज्जाजनक जीवन बितानेपर मजबूर कर दिया है । वहाँ मुझे जो हृदय द्रावक दृश्य देखने पड़े उनमें से एक था डर्बनमें आयोजित उन लोगोंकी सभा, जिन्हें ३ पौंडी कर देना होता था । सभामें कोई ५,००० लोग उपस्थित थे । जब एकके बाद एक पुरुष और स्त्रीने आ-आकर इस करके कारण होनेवाले अपने कष्टोंकी कहानी सुनानी शुरू की तो मेरा मन एक साथ घृणा, दया और दुःखके भावोंसे भर उठा । वहाँ मैं एक ६५ सालकी वृद्धासे मिला, जिसे यह कर न दे सकनेके कारण छः बार जेल जाना पड़ा था। आज इतने दिन बाद भी मैं उसका स्मरण करके विचलित हो उठता हूँ। इस परिस्थितिमें यदि शीघ्र ही कोई काफी सन्तोषजनक समाधान नहीं निकल आता तो दक्षिण आफ्रिका के भारतीय समाजको बहुत कष्ट और हानियाँ सहनी पढ़ेगी और कुछ ही वर्षोंमें उसे तबाह होकर उस देशको छोड़ ही देना पड़ेगा । यूरोपीय समाजकी स्थिति तो भारतीय समाजकी यह स्थिति मैने देखी । अब मैं आपके सामने यूरोपीय समाजको स्थितिका वर्णन करता चाहता हूँ । उसकी स्थितिको भी ठीकसे समझना आवश्यक है । हमें उसके हितों, उसकी कठिनाइयों, उसके दृष्टिकोण, बल्कि उसके पूर्वग्रहोंकी भी सही जानकारी होनी चाहिए। इन मुट्ठी-भर लोगों को - जिनकी संख्या यही कोई साढ़े बारह लाख होगी 1- एक विशाल वतनी आबादीके बीच रहना पड़ता है, जिसकी सभ्यताका स्तर इनकी सभ्यतासे सर्वथा भिन्न है । इन दोनों प्रजातियोंके Gandhi Heritage Portal
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