पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६०९

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परिशिष्ट ५७१ हैसियत अच्छी-खासी है। मोटे तौरपर हम कह सकते हैं कि उपर्युक्त तीनों प्रान्तोंमें कोई दो हजार व्यापारी हैं और पाँच-छः हजार फेरीवाले। मजदूरोंमें से अधिकांश अब भी गिरमिटके अधीन काम कर रहे हैं, जब कि शेष लोग या तो भूतपूर्वं गिरमिटिया हैं या उनके वंशज । केपमें भारतीयोंको नगर- पालिका मताधिकार भी प्राप्त हो सकता है और राजनीतिक मताधिकार भी । नेटालमें उन्हें नगरपालिका मताधिकार तो प्राप्त है, किन्तु राजनीतिक मताधिकार नहीं, और दोनों डच प्रान्तोंमें उन्हें बड़ी सख्ती के साथ नगरपालिकांके चुनाव में और अन्य राजनीतिक चुनाव में मताधिकार से वंचित रखा गया है। अबतक अलग-अलग प्रान्तोंके लिए अलग-अलग प्रवासी कानूनोंकी व्यवस्था है। केप और नेटालमें भारतीय किसी यूरोपीय भाषामें एक परीक्षा पास करके ही प्रवेश कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षोंसे दोनों प्रान्तोंको मिलाकर इस तरह प्रवेश करनेवालोंकी संख्या औसतन ४० से ५० के बीच ही रही है । यह संख्या वास्तवमें इतनी कम है कि आश्चर्य होता है । ट्रान्सवाल और औरजिया में नये भारतीयोंके प्रवेशपर फिलहाल पूरी रोक लगी हुई है। केप कालोनी और नेटालमें व्यापारियों तथा फेरीवालोंको अपने परवाने हर साल बदलवाने पड़ते हैं । नये परवाने देना-न-देना स्थानीय अधिकारियोंकी इच्छापर निर्भर है, जो लगभग सारे के सारे भारतीय व्यापारियोंसे व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता रखनेवाले यूरोपीय लोगोंमें से चुने जाते हैं । दूसरी ओर, ट्रान्सवालमें नियमानुसार तो परवाना शुल्क देने भरसे परवाने जारी कर देने पड़ते हैं । किन्तु, वहाँ स्वर्ण-कानून और कस्बा-अधिनियम नामसे दो ऐसे कानून लागू हैं, जिनका सम्मिलित प्रभाव इन परवानोंको बेकार बना देता है । इन कानूनोंके अन्तर्गत जहाँ कहीं भी किसी क्षेत्रको स्वर्ण-क्षेत्र घोषित किया जाता है, वहाँ भारतीय विशेष बस्तियों में ही रह या व्यापार कर सकते हैं, और ये बस्तियाँ आमतौरपर नगरोंसे कुछ दूर ही हुआ करती हैं। केप कालोनी और नेटालमें भारतीय भूसम्पत्ति रख सकते हैं या अन्य अचल सम्पत्ति प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु ट्रान्सवाल और औरेंजियामें उन्हें यह अधिकार उपलब्ध नहीं है । इनके अतिरिक्त अनेक अन्य छोटी-छोटी निर्योग्यताएँ भी हैं, जिनमें विभिन्न प्रान्तोंमें लागू कम-ज्यादा सख्त ढंगकी क्षोभकारी सामाजिक निर्योग्यताएं भी शामिल हैं। और अन्त में यह कि भारतीय बच्चोंकी शिक्षाके लिए लगभग कोई व्यवस्था नहीं है । यत्र-तत्र कुछ प्राथमिक विद्यालय देखनेको मिलते हैं, जिन्हें मुख्यतः मिशनरी संस्थाएँ या स्वयं भारतीय समाज चलाता है । लेकिन, पूरे दक्षिण आफ्रिकामें उनके लिए किसी प्रकारकी माध्यमिक अथवा उच्चतर या तकनीकी शिक्षाकी कोई व्यवस्था नहीं है । एक हृदय विदारक परिस्थिति वक्ताने कहा कि दक्षिण आफ्रिका पहुँचकर भारतीयोंकी स्थितिका मोटे तौरपर निरीक्षण करनेके बाद एक बार तो, मुझे मानना पड़ेगा, मेरा हृदय बैठ गया। स्थिति अनेक प्रकारसे सचमुच दयनीय और हृदय विदारक थी । यह तो सर्वविदित था कि ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी दशा बोअर गणतन्त्र के समय में भी बहुत बुरी थी, और उसके ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाये जानेके बादसे वह और भी बिगड़ती चली गई । किन्तु, यह बात बहुत कम लोग जानते थे कि संघ-सरकारके निर्माणके बादसे ट्रान्सवालको कठोर भारतीय- विरोधी भावनासे धीरे-धीरे सारा संघ विषाक्त होता चला गया है और परिणामतः केपमें ही नहीं, बल्कि नेटालमें भी भारतीयों की स्थिति बदले-बदतर होती रही है । वहाँ पहुँचनेपर मैंने देखा कि सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय समाजका प्रत्येक वर्ग अपने भविष्यके सम्बन्धमें एक गम्भीर आशंकासे भरा हुआ है, और उनके बीच सामान्य रूपसे अरक्षा, तबाही और उत्पीड़नकी एक ऐसी भावना फैली हुई है, जो निश्चय ही किसी भी समाजके नैतिक बलको तोड़ देगी। यूरोपीय आबादीका एक बहुत बड़ा हिस्सा स्पष्टतः वहाँ भारतीयोंके लिए वस्तुस्थितिको इतना असह्य बना देनेपर तुला हुआ है कि वे अपने-आप उस देशको छोड़कर चले जायें । बात इतनी ही नहीं है कि उनपर लागू कुछ कानून बहुत कठोर और अन्यायपूर्ण हैं । जो कानून अपने-आपमें कठोर अथवा अन्यायपूर्ण नहीं हैं, उनके अमल में भी इतनी सख्ती बरती जाती है कि समाजको लगभग हताश होकर रह जाना पड़ता है । उदाहरणके लिए, नेटाल और केपमें Gandhi Heritage Portal