५७० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय जीवन की विभीषिकाको सहर्ष झेला, और कश्योंने बार-बार । संघर्षके दौरान अनेक घर बरबाद हो गये, अनेक परिवार छिन्न-भिन्न हो गये । जो कभी धन-सम्पदावाले लोग थे, वे अपना सब कुछ गँवाकर दरिद्र बन बैठे । स्त्रियों और बच्चोंको अकथनीय कष्ट सहने पदे । किन्तु वे श्री गांधीकी आत्मशक्ति से अभिभूत थे और इसीने उन्हें कुछ-से कुछ बनाकर इस बातका एक उदाहरण उपस्थित कर दिया कि मनुष्य की आत्मिक शक्ति मानव मस्तिष्कपर • बल्कि कह सकते हैं भौतिक परिवेशपर भी कैसा जबरदस्त प्रभाव डाल सकती है । अपने संपूर्ण जीवनमें मैं ऐसे केवल दो व्यक्तियोंको जानता हूँ, जिन्होंने मुझे श्री गांधीकी तरह आध्यात्मिक रूपसे प्रभावित किया है - और वे हैं हमारे महान वयोवृद्ध देश भक्त श्री दादाभाई नौरोजी तथा मेरे स्वर्गीय गुरु श्री रानडे । ये ऐसे लोग हो गये हैं, जिनके सामने कोई अशोभनीय कार्य करते हुए न केवल हमें शर्म आती है, बल्कि जिनको उपस्थितिमें मनमें भी कोई अशोभनीय बात लाते डर लगता है । दरअसल दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके पक्षको खड़ा ही किया है श्री गांधीने । वे सर्वथा निःस्वार्थ भावसे आज बीस वर्षोंसे इस देशके लिए अपनी लड़ाई लड़ते आ रहे हैं और इस बीच उन्होंने अपने दामनमें कोई दाग नहीं लगने दिया है । भारतपर उनका बड़ा ऋण और आभार है । उन्होंने इस उद्देश्यके लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया है । उनकी वकालत बड़े जोरसे चल रही थी; उससे उन्हें सालाना पांच छः हजार पौंड प्राप्त हो जाते थे । यह रकम दक्षिण आफ्रिकामें किसी भी वकीलके लिए बहुत अच्छी आय मानी जायगी । किन्तु, वे इस सबका परित्याग करके प्रति मात तीन पौंडपर गलियोंमें रहनेवाले सर्वथा विपन्न आदमीकी जिन्दगी बिता रहे हैं । उनके सम्बन्धमें एक उल्लेखनीय बात यह है कि यद्यपि वे निरंतर इस संघर्ष में लगे रहे हैं, फिर भी उनके मनमें यूरोपीयोंके प्रति किसी प्रकारका दुर्भाव नहीं है । और अपनी यात्राके दौरान मुझे किसी भी बातसे उतनी खुशी नहीं हुई, जितनी इस बातसे हुई कि दक्षिण आफ्रिकाका समस्त यूरोपीय समुदाय श्री गांधीको सम्मानकी दृष्टिसे देखता है। मैंने देखा कि ज्यों ही किसी सभामें प्रमुख यूरोपीयोंको मालूम होता कि श्री गांधी उसमें उपस्थित हैं, वे उनसे हाथ मिलानेके लिए तुरन्त उनके चारों ओर घिर आते । इस प्रकार यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता था कि यद्यपि यूरोपीय लोग उनके विरुद्ध लड़ रहे हैं और संघर्षमें उन्हें कुचल देनेके लिए पूरी तरह प्रयत्नशील हैं, किन्तु व्यक्तिके रूपमें वे उनका बड़ा आदर करते हैं । मेरे विचारसे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय पक्षके लिए श्री गांधीका नेतृत्व उसकी सबसे बड़ी निधि है । और यह मेरा असीम सौभाग्य था कि कठिन परिस्थितियोंसे मुझे सुरक्षित निकाल ले जानेके लिए मेरी पूरी यात्रामें वे मेरे साथ रहे । परिस्थितिका विश्लेषण दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें बताते हुए श्री गोखलेने कहा कि दक्षिण आफ्रिका संघमें चार प्रान्त हैं- - केप कालोनी, नेटाल, ट्रान्सवाल और औरेंजिया; और पूरे संघमें कोई डेढ़ लाख भारतीय रहते हैं । इनमें से मोटे तौरपर सवा लाख लोग नेटालमें रहते हैं, कोई बीस हजार केपमें और लगभग दस हजार ट्रान्सवालमें रहते हैं । औरेंजियामें शायद ही कुछ भारतीय हों। उनकी संख्या सौसे अधिक नहीं होगी । कारण यह है कि कुछ साल पहले तत्कालीन बोअर सरकारने घरेलू नौकरोंके रूपमें काम करनेवाले भारतीयोंके अतिरिक्त अन्य सभी भारतीयोंको वहाँसे जबरदस्ती निकाल दिया था। दक्षिण आफ्रिकाको कुल भारतीय आबादीका अस्सी प्रतिशत हिस्सा गिरमिटिया मजदूरों, भूतपूर्वं गिरमिटिया मजदूरों या उनके वंशजोंका है । शेष बीस प्रतिशतमें वे स्वतन्त्र लोग हैं, जो गिरमिटिया मजदूरोंके साथ-साथ वहाँ गये थे । इस परिस्थितिको यह विशेषता आप लोगोंको समझनी है कि दक्षिण आफ्रिकाके बीच यहाँकी तरह कोई शिक्षित वर्ग नहीं है । जिन्हें हम शिक्षा-साध्य या सुसंस्कृत पेशा कहते हैं, उन पेशोंमें लगे हुए लोगोंकी संख्या उँगलियोंपर गिनने लायक है । अधिकांश लोग या तो व्यापारी हैं। अथवा मजदूर अथवा घरेलू नौकर । व्यापारियोंमें भी बहुलता टुटपुँजिए व्यापारियोंकी ही है, यद्यपि कुछकी Gandhi Heritage Portal
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