परिशिष्ट ५६९ फिर, मुझे यूरोपीय समुदायके व्यक्तियोंसे मिलनेकी जो सुविधा दी गई, उसकी बदौलत उस समुदायके विभिन्न वर्गोंके लोगोंकी भावनाओं और विचारोंको जाननेका असाधारण अवसर प्राप्त हुआ। सारे प्रश्नको हर दृष्टिसे परखनेके बाद मैं १४ नवम्बरको प्रिटोरियामें मन्त्रियों, जनरल बोथा, जनरल स्मटस और श्री फिशरसे मिला । हमारी बातचीत काफी देर तक, [ करीब ] दो घंटे चली । हमने सारे मामलेकी ब्योरेवार समीक्षाको और हमारे बीच पूरी तरह खुलकर, विचारोंका आदान-प्रदान हुआ । मन्त्रियोंने अपने सामने रखे गये मामलेपर ध्यानपूर्वक विचार करनेका वचन दिया और बताया कि उनके विचारसे परिस्थितिकी क्या-क्या विषमताएँ हैं । दूसरे दिन मुझे सारे मामलेको गवर्नर-जनरल, परम श्रेष्ठ लॉर्ड ग्लैडस्टनकी सेवामें प्रस्तुत करनेका सुअवसर मिला। इसके बाद मैं अपने मनमें अपनी सामर्थ्य-भर सब-कुछ कर डालनेका सन्तोष लेकर दक्षिण आफ्रिकासे रवाना हो गया; और साथमें, वहाँ मेरे देशभाइयोंने मुझपर जो स्नेह-रसकी वर्षा की, यूरोपीय समुदायके लोगोंने मेरे साथ जो असीम सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार किया तथा संघ-सरकारने मेरे प्रति जो अतीव सम्मान और शिष्टताके भाव प्रदर्शित किये, मैं उस सबको जीवन्ततम स्मृति लेकर आया हूँ । एक विषम परिस्थिति श्री गोखले ने आगे कहा : वहाँको वस्तुस्थितिके सम्बन्धमें बतानेसे पहलेमें आपसे व्यक्तिगत किस्मकी एक-दो बातें कहना पसन्द करूँगा । पहली बातका सम्बन्ध दक्षिण अफ्रिकामें मेरी स्थितिकी घोर विषमतासे है । मैं आपसे सच कहता हूँ, मुझे अपने जीवनमें पहले कभी भी इतनी कठिन और नाजुक परिस्थितिका सामना नहीं करना पड़ा था, और न मैंने अपने-आपको उत्तरदायित्वको भावनासे कभी इतना दवा पाया था, जितना कि दक्षिण आफ्रिकामें बिताये गये चार हफ्तों में पाया । दूसरी बातका सम्बन्ध मेरे प्रिय और प्रख्यात मित्र श्री गांधीसे है । मेरे केपमें उतरनेसे लेकर दक्षिण आफ्रिका प्रस्थान करने तक, बल्कि उसके बाद भी, जब मैं पूर्व आफ्रिकाकी यात्रापर था, श्री गांधी मेरे साथ रहे और हमने अपनी जागरणकी घड़ियोंका प्रायः एक-एक क्षण साथ ही बिताया । उन्होंने मेरे निजी सचिवके सारे दायित्व अपने ऊपर ले लिये थे; सच कहें तो वे मेरे 'पीर-बबर्ची ' सराबोर रखा, इस अवसरपर मैं भारतके लिए जो महान् कार्य कर करते हुए दो शब्द कह देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ; स्नेहके रसमें उन्होंने मुझे किन्तु वे दक्षिण आफ्रिकामें आदि सभी कुछ थे । जिस निष्ठापूर्ण उसके सम्बन्धमें नहीं बोलना चाहता । रहे हैं, उसके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित यद्यपि उनके कार्यको देखते हुए वह सर्वथा अपर्याप्त होगा । त्याग-वीर देवियो और सज्जनो, जो लोग आजके श्री गांधीके व्यक्तिगत सम्पर्क में आये हों, केवल उन्हींको इस पुरुषके अद्भुत व्यक्तित्वका एहसास हो सकता है । निस्सन्देह, वे उस धातुके बने हुए हैं, जिस धातुसे सूरमा और बलिदानी लोगोंका निर्माण होता है। बल्कि इतना कहना भी कम ही होगा । उनमें वह अद्भुत आत्मिक शक्ति विद्यमान है, जो उनके इर्दगिर्देके लोगोंको भी सूरमा और बलिदानी बना देती है । यह बात कितनी अविश्वसनीय प्रतीत होती है कि अभी हालके ट्रान्सवाल सत्याग्रह संघर्ष के दौरान वहाँ रहनेवाले हमारे सत्ताईस सौ देशवासी अपने देशके सम्मानकी रक्षा करनेके लिए श्री गांधीके नेतृत्वमें जेल गये । उनमें से कुछ तो अच्छी हैसियतवाले लोग थे और कुछ छोटे-छोटे व्यापारी, किन्तु खासी बड़ी संख्या निर्धन और असहाय लोगोंकी थी, जो फेरी लगाकर, मेहनत- मजदूरी या ऐसे ही कुछ काम करके दिन काटते हैं। उन्होंने कोई शिक्षा नहीं पाई है, और अपने देश-जैसी किसी चीजके सम्बन्धमें तो वे सोचने-बोलनेके आदी ही नहीं हैं । फिर भी, उन्होंने अपने देशके लिए अपमानजनक कानूनकी सत्ताको स्वीकार करनेके बजाय ट्रान्सवाल्के जेल- Gandhi Heritage Porta
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