परिशिष्ट २३ बम्बई में गोखलेका भाषण दिसम्बर १४, १९१२ माननीय श्री गोखले जब बोलनेके लिए उठे तो लोगोंने बड़े उत्साहके साथ उनका स्वागत किया । श्री गोखलेने अपना भाषण प्रारम्भ करते हुए कहा : अध्यक्ष महोदय, देवियो और सज्जनो, मैं आपको नहीं बता सकता कि भारत वापस आकर मैं कितना प्रसन्न हूँ । और इस विशाल जनसमुदायने मेरा जो सौजन्यपूर्ण तथा हार्दिक स्वागत किया है। तथा अध्यक्ष महोदयने दक्षिण आफ्रिकामें मेरे कार्योंकी जिस मुक्तकण्ठले प्रशंसा की है, उससे मेरी प्रसन्नता और भी बढ़ जाती है । वहाँ मुझे अपने कामके दौरान काफी श्रम करना पड़ा, किन्तु निस्सन्देह हमारे दक्षिण आफ्रिकी देशमाइयोंने मेरी यात्रापर बड़ा सन्तोष प्रकट किया है, और उनके सन्तोष तथा आपके द्वारा किये गये इस हार्दिक स्वागतके रूपमें मुझे उस कठिन श्रमका पर्याप्त पुरस्कार मिल गया है । आप शायद जानते होंगे, और यह बात मैं सार्वजनिक रूपसे भी कह चुका हूँ कि मैंने यह यात्रा हमारे दक्षिण आफ्रिकावासी महान् देश-बन्धु श्री गांधीके हार्दिक निमन्त्रणपर की थी। उन्होंने इसके लिए मुझसे बार- बार आग्रह किया था । किन्तु, जब मैंने पहले-पहल वहाँ जानेका निश्चय किया तो मेरा इरादा था कि मैं उस देशमें जहाँतक हो सके, बिना किसी शोर-शराबेके जाऊँ और सभी प्रमुख भारतीय केन्द्रोंका दौरा करके, वहाँ हमारे देशभाइयोंके साथ जो बरताव किया जाता है, उसके सम्बन्धमें तथ्य एकत्र करके लौट आऊँ और फिर उन तथ्योंको इस देशकी सरकार और जनताके सामने पेश कर दूँ, ताकि दक्षिण आफ्रिका में भारतीय पक्षको समर्थन देनेके लिए यहाँ अधिक सरगर्मी से कोशिश की जा सके। लेकिन, केप टाउन पहुँचकर जब मैंने सचमुच देखा कि संघ-सरकार किस तरह मुझे हर प्रकारकी सम्मान-सुविधा प्रदान करनेको उत्सुक है और उन सारे प्रमुख केन्द्रोंमें किस तरह न केवल हमारे देशभाश्योंने, बल्कि यूरोपीय समुदायके लोगोंने भी मेरे लिए सभा आदिको पूरी व्यवस्था कर रखी है, तब मेरे सामने इसके अलावा और कोई चारा नहीं रह गया कि मैं इन सारी व्यवस्थाओंकी भावनाके साथ हार्दिक सहयोग करूँ और मुझे जो अवसर सुलभ कराया गया था उसका पूरा-पूरा उपयोग करूँ। इस परिस्थितिमें यदि मैंने कुछ और किया होता तो उसका मतलब मैं जिस उद्देश्यकी सेवा करने वहाँ गया था उसके साथ विश्वासघात करना और अपने-आपको, उस विश्वासके अयोग्य सावित करना होता जो मेरे दक्षिण आफ्रिकी देशभाइयोंने मुझमें व्यक्त किया । समय कैसे बिताया इसके बाद श्री गोखलेने बताया कि किस प्रकार उनका दक्षिण आफ्रिकाका चार सप्ताहका प्रवास प्रमुख भारतीय केन्द्रोंका निरीक्षण करनेमें बीता । उन्होंने कहा कि मैं इस दौरान वहाँ बसे हजारों भारतीयोंसे ही नहीं, बल्कि बहुत-से यूरोपीयोंसे भी मिला, जिनमें से कई तो काफी प्रसिद्ध लोग हैं । मैं जिन सभाओं में बोला, उनमें से कुछ तो विशुद्ध रूपसे भारतीयोंकी थीं और कुछ यूरोपीयोंकी; किन्तु अधिकांश सभाओं में इन दोनों समुदायोंके श्रोता शामिल थे। मैंने सभी मतों और विभिन्न हितोंका प्रतिनिधित्व करनेवाले अनेक प्रमुख लोगोंके साथ हुई मुलाकात और गोष्टियोंमें इस प्रश्नके विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया । प्रश्नके भारतीय पक्षसे मैं पहलेसे ही अवगत था, और केप टाउन पहुँचनेपर भारतीयोंकी हद तक इस मामले सम्बन्धित तथ्योंको पूरी तरह देखने-समझने में मुझे देर नहीं लगी । Gandhi Heritage Portall
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६०६
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