पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६०३

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परिशिष्ट ५६५ और पंजीकृत स्वामीके घरेलू नौकरों या उसके असामियोंको छोड़कर कोई रंगदार व्यक्ति उस भूमिपर नहीं रहेगा । पूर्वोक्त शर्तका उल्लंघन होनेपर ट्रान्सवाल सरकारको अधिकार होगा कि वह इस पट्टेको रद कर दे और उस भूमिपर बनाई गई इमारतों या किसी अन्य निर्माणका अथवा उक्त भूमिमें किये गये किसी सुधारका कोई मुआवजा दिये बगैर उसे वापस अपने कब्जे में ले ले । " १७. यह ध्यान देने योग्य है कि यद्यपि मुख्य कानूनकी व्यवस्थाएँ भेदभावसे मुक्त हैं, किन्तु शाही पट्टकी शर्तें, जो मुख्य कानूनका अभिन्न अंग हैं, इस अर्थ में जातिभेदपर आधारित एक गम्भीर निर्योग्यता थोप देती हैं कि भारतीय समाजको अप्रत्यक्ष रूपसे अचल सम्पत्तिके स्वामित्वका जो अधिकार अभीतक प्राप्त रहा है, उसे उससे वंचित करता है। इसके अतिरिक्त ऊपरके अनुच्छेद १४ में उल्लिखित परिस्थितियों में उन भारतीयोंको, जिन्हें आज भूसम्पत्तिका अप्रत्यक्ष स्वामित्व प्राप्त है, भविष्य में बिना कोई मुआवजा दिये उनकी वैध ढंगले प्राप्त सम्पत्तिसे वंचित कर दिया जायेगा । १८. भारतीय समाजका कहना है कि ये शर्तें कानूनके विपरीत हैं, अथवा यों कहें कि कानून स्वयं ही गैरकानूनी है, और इसलिए अवैधानिक है । उसका कहना है कि १९०८ और १९०९ के कस्बा संशोधन अधिनियमोंका अभिप्राय स्पष्टतया भेदभावपूर्ण विनियमोंकी रचनाका निषेध करनेका है। दूसरी ओर, १९०६ के ट्रान्सवाल संविधानमें व्यवस्था है कि भेदभावपूर्ण कानूनोंपर शाही स्वीकृति होने तक उसे अमलमें न लाया जाये । चूँकि १९०८ और १९०९ के अधिनियम सामान्यतः सभीपर लागू होते थे, इसलिए उन्हें [ शादी अनुमति प्राप्त करनेके लिए ] रोका नहीं गया, बल्कि गवर्नरने उनपर तुरन्त स्वीकृति दे दी । उनके अन्तर्गत बनाये गये भेदभावपूर्ण विनियम संसदकी जानकारीमें कभी नहीं लाये गये और न उन्हें सम्राट उपनिवेश-मन्त्रीके परीक्षणके लिए ही भेजा गया । उसका कहना है कि संविधानकी शर्तें पूरी नहीं की गईं हैं और इन विनियमोंको कानूनकी कोई शक्ति अथवा प्रभाव प्राप्त नहीं है । १९. कुछ तो अपना व्यापार फैलानेकी दृष्टिसे और कुछ इन विनियमोंकी वैधता जाँचनेकी दृष्टिसे श्री अहमद मूसा भायातने भू-सम्पत्तिको अप्रत्यक्ष मिल्कियत के अपने उस अधिकारका उपयोग करते हुए, जिसे अबतक इस प्रान्तको अदालतों और सरकारकी मान्यता प्राप्त रही है, पिछले वर्षके उत्तरार्द्ध में बॉक्सवर्ग कस्बेमें कुछ बाड़ोंकी पूरी मिल्कियत खरीद ली । ये बाड़े श्री लुई वाल्टर रिच, बैरिस्टर-इन-लॉक नाम रजिस्टर कराये गये । श्री रिच कुछ समय पहले तक इंग्लैंडमें दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति के मन्त्री थे, और इस समय जोहानिसबर्ग में दक्षिण आफ्रिका संघके सर्वोच्च न्यायालय में वकालत कर रहे हैं। २०. उन्होंने उक्त बाड़े जब खरीदे उससे पहले उस कस्बेके गोरे निवासियोंने मिलकर निश्चय किया था कि कस्बेका कोई बाड़ा भारतीयोंके हाथ अप्रत्यक्ष रूपसे नहीं बेचेंगे। इसमें उनका उद्देश्य बॉक्सबर्गको विशुद्ध रूपसे गोरोंकी बस्ती बनाये रखना और भारतीयोंको बस्तियोंमें सीमित रखना था । श्री भाषातको एक ऐसा व्यक्ति मिल गया जो अपने बाड़े बेचनेको इच्छुक था, अतः उन्होंने उक्त सम्पत्ति खरीद ली और बहुत धन व्यय करके उस जमीनपर उपयुक्त इमारतें बनवाई, और चूँकि वे सरकारसे व्यापारिक- परवाना पहले ही ले चुके थे, इसलिए उन्होंने उस इमारतमें आम वस्तुओंके विक्रयका रोजगार शुरू कर दिया। २१. किन्तु, श्री भाषातके यूरोपीय व्यापारी प्रतिद्वन्दियोंकी व्यापारिक ईर्ष्या जग उठी है। श्री भाषातको संगठित बहिष्कारका शिकार बनाया गया है। वहाँके गोरे निवासियोंने संघ सरकार पर दबाव डालकर सर्वश्री रिच और भाषातके खिलाफ मुकदमा दायर करवा दिया है ताकि अदालतसे उनका स्वामित्वका पट्टा रद कर दिया जाये, उन्हें उस जमीनसे निकाल बाहर किया जाये, और उनसे इर्जाना वसूला जाये । अपने बचाव के लिए दोनों [ श्री रिच और श्री भायात ] को व्यय-साध्य मुकदमेबाजी करनी पड़ रही है, और श्री भाषातके सामने बिना कोई मुआवजा पाये अपनी जायदाद और व्यापारसे हाथ धो बैठनेका खतरा Gandhi Heritage Portal