५६२ सम्पूर्ण गांधी वाङमय दूँ कि श्री ओवेनका उत्तर सन्तोषजनक है अथवा नहीं। किन्तु, मेरा खयाल है, अब इस सम्बन्धमें कुछ करने की जरूरत नहीं है, हालाँकि मैं इस मामलेको समाप्त करके एक प्रकारसे दुःखी भी हूँ; क्योंकि इसमें एक सिद्धान्तका प्रश्न समाहित था और वह न्यूनाधिक अनिर्णीत ही रह गया । कुमारी पोलकने मुझे यह भी बताया है कि उन्होंने आपको लिखे पत्र में ऐसा आभास दिया है कि उन्हें इसी सर्दियोंमें दक्षिण आफ्रिका जाना चाहिए, ताकि वे वहाँकी परिस्थितिकी चश्मदीद जानकारी प्राप्त करके हमारी दक्षिण आफ्रिकी समस्याओं को हल करनेका प्रयत्न कर सकेँ । मैं उनसे सर्वथा सहमत हूँ, और मुझे पूरी आशा है कि आप उनके सुझावको स्वीकार कर लेंगे। मैंने देखा है कि उन्हें इस पदके दायित्वोंको सँभालने में कितनी जबरदस्त कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है, और उनके काम में सहायता पहुँचानेके लिए कमसे कम इतना तो किया ही जाना चाहिए कि उन्हें दक्षिण आफ्रिकाकी परिस्थितियोंकी चश्मदीद जानकारी प्राप्त करनेका एक अवसर दिया जाये । उनका विचार हर दृष्टिसे सही है । यदि खर्चेकी बात को लेकर आपको स्वीकृति देनेमें कोई बाधा होनेकी सम्भावना हो तो मैं भारत लौटनेपर, उनकी यात्रामें जो सौ-एक पौंड ऑोंगे, उनका प्रबन्ध करनेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता हूँ । अतः, आज कृपया उनकी योजनाको स्वीकृति दे दें और तार द्वारा उन्हें अपनी यात्राके टिकट आदिका प्रबन्ध करनेकी अनुमति भेज दें । मैं ५ अगस्तको यूरोपके लिए प्रस्थान कर रहा हूँ । यहाँ नेशनल लिबरल क्लब ( व्हाइट प्लेस, एस० डब्ल्यू ० ) के पतेपर आये पत्र मैं जहाँ कहीं भी होऊँगा, मुझे भेज दिये जायेंगे । हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६७२ ) की फोटो नकलसे । परिशिष्ट २१ हृदयसे आपका, गो० कृ० गोखले स्वर्ण-कानून और कस्बा - अधिनियम (१९०८) के बारेमें भारत सरकारको पोलकका पत्र सचिव, भारत सरकार अप्रैल १९, १९१२ वाणिज्य और उद्योग विभाग शिमला [ महोदय, ] हाल ही में प्रकाशित श्वेत-पत्र (सी० डी० ६०८७) के सम्बन्धमें, जिसमें " ट्रान्सवालके स्वर्ण कानून और १९०८ के कस्वा अधिनियमोंके अन्तर्गत भारतीयों की स्थिति के बारेमें हुआ पत्र-व्यवहार " दिया गया है, और विशेष रूपसे उसके पृष्ठ १७ पर छपी संघ-सरकारकी टिप्पणी (संलग्न संख्या ९) के दूसरे अनुच्छेद के बारेमें मैं इस प्रान्तके भारतीय समाजकी ओरसे निम्नलिखित बातें निवेदित करना चाहता हूँ । २. सन् १८८५ का कानून ३ एशियाकी वतनी जातियोंके ऊपर लागू होता है, और उसके अन्तर्गत भारतीयों तथा अन्य एशियाइयोंको बस्तियों या बाजारोंको छोड़कर अन्यत्र कहीं अचल सम्पत्ति रखनेका निषेध है । Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६००
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