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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उनके वक्तव्य, भाव और उद्देश्य दोनों ही दृष्टियोंसे, कमसेकम अपने एक सहयोगीके सार्वजनिक वक्तव्योंसे काफी भिन्न हैं ।

६. ट्रान्सवालके एशियाई प्रश्नके सम्बन्धमें डिवीजनल कोर्टने स्वर्ण कानूनके खण्ड ७७ और १३० की जो व्याख्या की है और जिसका उल्लेख लॉर्ड ग्लैडस्टनके इसी २३ तारीखके खरीते सं० ८१७ में किया गया है, उन्होंने गम्भीर चिन्ता प्रकट की । उनके खयालसे यह निर्णय कानूनके विरुद्ध है; किन्तु वे उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहते । वे यह समझते हैं कि इसका प्रभाव यह होगा कि इस अधिनियमके पारित होनेसे पूर्व कस्बोंके बाहर जहाँ कहीं खान- क्षेत्रसे एशियाइयोंके बाढ़ोंको उठानेका अधिकार था, उसका उपयोग अब भी किया जा सकता है । इसका परिणाम यह होगा कि एकबारगी ही एशियाई दूकानें बड़ी संख्या में समस्त रीफ (स्वर्ण क्षेत्र) में खुल जायेंगी, जिसके फलस्वरूप गोरे व्यापारियोंको निकलना पड़ेगा तथा सोने और शराबके गैरकानूनी व्यापारको, जिसमें एशियाइयोंके प्रवृत्त होनेकी खासी गुंजाइश है, बहुत प्रोत्साहन मिल जायेगा । उनके विचारसे अतिरिक्त कानून बनाना आवश्यक हो सकता है और इस विशेष कठिनाईका तथा ट्रान्सवालमें एशियाई व्यापारके आम प्रश्नका हल, जिसके लिए वे इच्छुक थे, नेटालकी प्रणालीसे मिलती- जुलती एक लाइसेंस-प्रणाली लागू करके प्राप्त किया जा सकता है । स्मरण रहे कि मन्त्रियोंने अपने २ सितम्बर के खरीते सं० १०२८ में एक ऐसे उपायपर विचारकी ओर संकेत किया था जो उसी मासकी ४ तारीखके लॉर्ड ग्लैडस्टनके खरीते सं० ७३७ के साथ (उपनिवेश ) मन्त्रीको भेजा गया था। जनरल स्मट्सके विचारमें यह योजना जान पड़ती है कि स्थानीय अधिकारी ट्रान्सवालमें समस्त व्यवसायोंके लिए लाइसेंसकी एक व्यापक प्रणाली आरम्भ करें जिसमें एशियाइयोंसे कोई भेदभाव न किया जाये, उनके वर्तमान अधिकार कायम रखे जायें और उन्हें अनुचित कष्टसे अपना बचाव करनेके लिए किसी केन्द्रीय अधिकारोके सम्मुख अपील करनेकी छूट दी जाये । स्पष्ट है कि वे इस सम्बन्धमें अभी किसी निश्चित परिणामपर नहीं पहुँचे हैं और वे समझते हैं कि ऐसे किसी भी प्रस्तावका कई क्षेत्रों में भारी विरोध किया जायेगा। फिर भी उन्होंने कहा कि इस प्रान्तमें एशियाई व्यापार जिस तेजीसे बढ़ रहा है, उसे देखते उसको नियन्त्रित करनेके लिए कुछ कार्रवाई करना अत्यन्त आवश्यक है, और उनकी रायमें परवानेकी प्रणाली आरम्भ करनेका व्यावहारिक प्रभाव यही होगा, चाहे उसका रूप प्रजातीय भेदभावसे कितना ही मुक्त क्यों न हो । उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि गोरे व्यापारी एशियाई स्पर्धाके रहते टिक नहीं सकते। उन्होंने इस बातको भी स्वीकार किया कि गोरे व्यापारियोंके व्यापारके तरीके ऐसे हैं जिनसे वे बहुत अधिक सहानुभूतिके पात्र नहीं ठहरते; क्योंकि उन्हें जो अवसर प्राप्त हुआ है, उसका उन्होंने अनुचित लाभ उठाया है और उनकी वृत्ति अत्यधिक मुनाफा लेनेकी है। किन्तु ऐसा होनेपर भी वे इसके वैकल्पिक उपायका सामना करनेके लिए तैयार नहीं हैं जिससे देशका समस्त फुटकर व्यापार एशियाइयोंके हाथोंमें चला जायेगा । एक ओर गोरे व्यापारियोंके अवांछनीय व्यापारिक तरीके हैं और दूसरी ओर एशियाई व्यापारका असीमित विकास है । ये दोनों ही चुरे हैं । इन दोनोंमें से उन्हें पहलेका चुनाव करनेमें कोई झिझक नहीं हो सकती, बशर्ते कि वे दक्षिण आफ्रिकाको गोरोंका देश बनानेके अपने आदर्शको व्यर्थं सिद्ध न करना चाहे । उनके कथनको ध्वनिसे मुझे कोई सन्देह नहीं रहा है कि वे इस प्रश्नपर गम्भीरतापूर्वक विचार कर रहे हैं । वे इस मामलेको केवल सैद्धान्तिक विचारका विषय मानकर ऐसा नहीं कर रहे, बल्कि कोई प्रभावकारी कार्रवाई करनेकी दृष्टिसे कर रहे हैं, और मुझे भय है कि यह आशा करना व्यर्थ होगा कि इस प्रश्नको झमेले में डाल रखा जायेगा ।

एच० जे० स्टैनले

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिल रेकर्डस, सी० ओ० ५५२/४४

१. अनुच्छेद ५ को मूलमें ही सम्भवतः जानबूझकर शामिल नहीं किया गया है ।