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परिशिष्ट ९

संरक्षककी रिपोर्टका सारांश

भारतीय प्रवासी संरक्षक द्वारा सन् १९१० के प्रकाशित विवरणसे स्पष्ट है कि १९०९की अपेक्षा सन् १९१०में गिरमिटिया-प्रथा के अन्तर्गत नेटाल आनेवालोंकी संख्या दोगुनीसे भी काफी अधिक थी । यह संख्या सन् १९०९ में २४८७ और सन् १९१० में ५८५८ थी । जहाजपर १६ व्यक्ति मरे, जिसके बारेमें संरक्षकका कथन है कि "यह संख्या औसत संख्यासे बहुत अधिक है। इस बढ़ी हुई संख्याका मुख्य कारण था मद्रास छठी बार आफ्रिका जानेवाले ' उमलोटी' नामक जहाजपर आठ मौतोंका हो जाना । " पाठकों को स्मरण होगा कि उमलोटी जहाजपर गर्दन तोड़ बुखार (स्पॉटेड फीवर) फैल गया था । संरक्षक द्वारा प्रस्तुत निम्नलिखित विवरण से उस ज्वरके फैलनेके बारेमें कुछ जानकारी प्राप्त होती है । वह कहता है : सर्जन सुपरिटेंडेंटने मुझे सूचित किया कि अनेक बच्चे बहुत ही कमजोर हालत में जहाजपर चढ़ाये गये थे; और यह विवश होकर करना पड़ा था नहीं तो बहुतसे भारतीयोंको रोक देना पड़ता । इससे स्पष्ट है कि एजेंटोंको एक बड़ा जत्था भेजनेकी ऐसी फिक्र सवार थी कि वे यात्राके दौरान बीमारी फैलने या मौतें हो जानेका खतरा उठानेको तैयार थे; और हुआ भी यही, एक भयंकर बीमारी फैल गई । हमें यह भी बताया गया है कि इस जहाजपर जो भारतीय सवार थे उनमें से अनेक तो जहाजसे उतर चुकनेके बाद मरे थे । गर्दनतोड़ बुखारके कारण मरनेवाले आठ भारतीय इन्हीं में से थे । वर्ष भर में इस बुखारसे १४ मौतें हुईं। हम तो ऐसा समझते हैं कि इन हकीकतों को देखते हुए हमारे द्वारा उस समय की गई पूछताछके उत्तरमें संरक्षकने जो यह कहा था : " भयका कोई कारण नहीं है”, “ थोड़े ही लोग मरे हैं ", " आशा है कि रोग अब तक शान्त हो गया है ", – यह किसी हालत में भी पूरी जानकारी नहीं थी ।

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१. गिरमिटिया भारतीयोंका एक जत्था उमलोटी जहाज द्वारा रवाना हुआ था । (ये भारतीय विशेषकर सर लोएज ह्यूलॅटके बागानोंके लिए भेजे गये थे ) । जहाज सितम्बर १९१० में डर्बन पहुँचा;यात्रियों में से कुछ भारतीय गर्दैनतोड़ बुखारसे मर गये । सरकारकी ओरसे कुछ सूचना न मिलनेके कारण २२ सितम्बरको संपादक इंडियन ओपिनियनने भारतीय प्रवासियोंके संरक्षक पोल्किंगहॉर्नको लिखा कि जो समाचार छपा है क्या वह सही है । २४ सितम्बरको पोल्किंगहॉर्नने अपने उत्तर में यह स्वीकार किया कि " कुछ " मौतें हुई जरूर हैं और विश्वास दिलाया कि “ भयका कोई कारण नहीं है । ” सम्पादकने उस अधिकारीको फिर पूछा कि मरनेवालोंकी अथवा उन भारतीयोंकी जो उस रोगसे पीड़ित हैं अथवा जिन्हें उस रोगके कारण रोक रखा गया है, संख्या क्या है । अधिकारीने उत्तर में लिखा कि “ फलाँ तारीखके नेटाल मर्क्युरी में समाचारको देखिए"। इस उत्तरपर १ अक्तूबर के इंडियन ओपिनियन में सम्पादकने कड़ी टिप्पणी लिखी । इसपर उस अधिकारीने सम्पादकको और कोई सूचना या समाचार देनेसे इनकार कर दिया । २६ अक्तूबरको नेटाल इंडियन कांग्रेसने पोल्किगहोंनेको एक पत्र भेजा; उत्तर में इस अधिकारीने कहा कि आप जो जानकारी चाहते हैं वह प्रस्तुत की जा सकती है, परन्तु शर्त यह है कि उसे इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित न किया जाये । कांग्रेसने ३१ अक्तूबर को उसे यह लिख भेजा कि चूँकि यह मामला सार्वजनिक है इसलिए आप जो उत्तर भेजेंगे, वह समाचार-पत्रोंको जरूर दिया जायेगा | इंडियन ओपिनियनसे यह नहीं कहा जा सकता कि आप दैनिक