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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और फिर अदायगी नहीं पानेपर दुर्भाग्यकी मारी स्त्रियोंको सपरिश्रम कारावासकी सजा दे देते हैं। इस प्रकारकी जबरन वसूलीसे अनिवार्यत: पैदा होनेवाली आर्थिक और सामाजिक बुराइयोंको अधिक विस्तारसे पेश करना मैं अनावश्यक समझता हूँ ।

७. मन्त्री श्री हरकोर्टने दक्षिण आफ्रिका संघके गवर्नर-जनरलको जो खरीते भेजे थे, उनको पढ़कर केप और नेटालके भारतीयोंको बड़ा सन्तोष हुआ था । उपनिवेश मन्त्रीने उनमें कहा था कि ट्रान्सवालके विवादके सम्बन्धमें जो भी समझौता किया जाये, उसमें केप और नेटाल्के भारतीयोंके अधिकारों और सुविधाओं को कम नहीं होने देना चाहिए । पर दुर्भाग्य की बात है कि पिछले सत्र के दौरान संसद में जो विधेयक पेश किया गया, उसका भारतीय हितोंपर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता था; और अगले वर्ष पेश होनेवाले विधेयक के बारेमें भी बड़ी आशंका यह है कि उसमें सभी आवश्यक रक्षोपाय सम्मिलित नहीं किये जायेंगे। निवेदन है कि वर्तमान नेटाल कानूनमें जैसा किया हो गया है, संविहित अधिवासकी स्पष्ट परिभाषा की जानी चाहिए, मौजूदा परीक्षाओंको अधिक सख्त नहीं बनाना चाहिए और भारतसे मुनीम तथा अन्य विश्वस्त सहायक लानेका भारतीय व्यापारियोंका मौजूदा अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए । मुझे अधिकार देकर यह अनुरोध करनेके लिए विशेष रूपले हिदायत दी गई है कि उपनिवेश मन्त्री इन प्रान्तोंके भारतीय निवासियोंको गम्भीर हानि और अन्यायसे बचानेके लिए प्रत्येक प्रस्तावित प्रवासी विधानकी बड़ी सावधानीसे छानबीन करें।


८. दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी शिकायतों के दो बड़े कारण है । पहला तो यह कि दक्षिण आफ्रिका अधिनियमके खण्ड १४७ में सम्मिलित संरक्षणके उपायोंके प्रयोजनको निष्फल बनानेके लिए ऐसे कानून बनाये जा रहे हैं, जो हैं तो एशियाई विरोधी, पर जिनकी भाषा ऐसी रखी जाती है जिससे ऐसा लगे कि वे सर्वसामान्य रूपसे सभी लोगोंपर लागू होते हैं। दूसरा यह कि विधान विशेष तो चाहे स्वीकार्य हो लेकिन उसके अन्तर्गत बनाये गये विनियम ऐसे होते हैं जिनमें बहुधा जातीय भेदभावको अत्यन्त आपत्ति- जनक व्यवस्थाओं का समावेश रहता है और ये विनियम बहुधा मंजूरी के लिए संसद में पेश नहीं किये जाते ।


९. लगता है कि मैंने दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके कष्टों के बारेमें पहले कही बातोंको ही काफी हद तक दोहराया है। लेकिन साम्राज्य-सम्मेलनमें स्वशासित उपनिवेशोंके ( डोमीनियन्सके) भारतीय निवासियोंके साथ होनेवाले बरतावसे सम्बन्धित चर्चाका दिन निकट आ रहा है और चूँकि उपनिवेश-मन्त्रीके साथ मैं परिस्थितिके बारेमें व्यक्तिगत रूपसे बातचीत नहीं कर सकूँगा इसलिए मैंने सोचा कि यह ज्यादा अच्छा रहेगा कि कोई भी तत्सम्बन्धी मामला ऐसा न रह पाये जिसका पर्याप्त निरूपण न हुआ हो, फिर चाहे कुछ बातोंको दोहराना ही पड़ जाये । मन्त्री श्री हरकोर्ट, प्राप्त जानकारीके अतिरिक्त यदि कोई और ऐसी जानकारी चाहें, जो में उन्हें दे सकता हूँ, तो मैं बड़ी खुशीसे उनकी सेवांके लिए तैयार रहूँगा ।

आपका

एच० एस० एल० पोलक

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकर्डस; सी० ओ० ५५१/२२ ।