ऐसा कोई भी उप-नियम इस अध्यादेश या नगरपालिकाकी सीमामें लागू किसी भी अन्य कानूनकी व्यवस्थाओं के साथ असंगत, उनके विरुद्ध या उनके प्रतिकूल नहीं होगा ।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-६-१९११
ख
जोहानिसबर्ग
जून ५, १९११
माननीय प्रशासक
तथा सदस्यगण
प्रान्तीय परिषद्,
ट्रान्सवाल
ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षको हैसियतसे श्री अ० मु० काछलियाका प्रार्थनापत्र विनम्र निवेदन है कि
१. प्रार्थीने १७ मईके सरकारी सूचनापत्र में प्रकाशित स्थानीय शासन अध्यादेश १९११ का प्रारूप पद लिया है। प्रार्थीको बड़ी गहरी आशंका है कि उसकी कई धाराएँ यहाँ वैधरूपसे रहनेवाले ब्रिटिश भारतीय निवासियोंपर नई-नई गम्भीर निर्योग्यताएँ थोप देंगी ।
२. प्रार्थी देखता है कि अध्यादेशका खण्ड ६६ और ६७ परिषद्को केवल एशियाइयोंके लिए बाजारों या अन्य क्षेत्रोंका अलगसे निर्धारण करने, उन्हें ठीक हालत में रखने तथा चलाने और परिषद् द्वारा समय- समयपर बनाये जानेवाले उप-नियमोंके अनुसार उनका नियन्त्रण करनेका अधिकार प्रदान करता है। और खण्ड ६६ के उपखण्ड (३) के अनुसार परिषद् ( गवर्नर-जनरलके अनुमोदन और उसकी सहमति से ) ऐसे किसी स्थानपर जहाँ सबकी नजर पड़ सके अपनी मंशाके बारेमें सूचना पत्र लगवाकर ऐसे बाजारोंको बन्द कर सकती है। इसके सम्बन्धमें प्रार्थी कहना चाहता है कि जातीय भेदभावके आधारपर अमुक लोगोंको अलग बसानेके सामान्य प्रश्नको न भी उठाया जाये, जिसके बारेमें आपके प्रार्थीको सिद्धान्तः आपत्ति है, तो भी परिषद्को जो शक्तियाँ प्रदान की गई हैं उनको, ब्रिटिश भारतीयोंके, विशेषकर ऐसे बाजारोंमें अपना कारोबार जमा लेनेवाले दूकानदारोंके खिलाफ, बढ़े ही हानिकारक ढंगले प्रयुक्त किया जा सकता है। नगरोंका आकार बढ़नेपर लगभग हर बार पहलेके " बाजारोंको " बन्द कर दिया गया है और उसके फलस्वरूप दूकानदारोंको नगरके केन्द्रों और मार्गोंसे अधिक दूर-दूर स्थित दूसरे बाजारमें भेज दिया गया है । अवधिके बारेमें इस तरहकी अनिश्चितता व्यवसाय और खुशहालीके प्रतिकूल पड़ती है और ऐसे " बाजारों" में दूकान बनाने और धन्धा करनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंके लिए भीषण कठिनाई उत्पन्न कर देती है ।
३. खण्ड ७५ (१२), (१३) और (१४) और खण्ड ८८ (६) का एशियाइयोंके हितोंसे विशेष सम्बन्ध है । इन खण्डों के अन्तर्गत परिपदे भोजनालयों, मांसकी दूकानों, एशियाइयों और काफिरोंके भोजनालयों, ठेलेवालों, फेरीवालों, धोबियों और धुलाईघरोंका तथा उन्हें दिये जानेवाले परवानोंका नियन्त्रण करती रहेगी; और प्रार्थी देखता है कि विधानमें उल्लिखित दूसरे व्यवसायोंसे सम्बन्धित परवानोंके परिषद्
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१. ट्रान्सवाल सरकारने १९०८ में लगभग इसी प्रकारके पंजीयनको एक व्यवस्था करनेकी कोशिश की थी लेकिन बादमें उसे त्याग देना पड़ा था; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २४३, २४८, २८६-८७, ३०९-१० ।