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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


मानदण्ड नहीं । सातवाँ प्रश्न:पर्याप्त रूपसे शिक्षित पंजीकृत भारतीयोंको परवाने लेते समय अँगुली या अँगूठा निशानी देना जरूरी नहीं। आठवाँ प्रश्न : जाने-माने एशियाइयोंको यदि वे अंग्रेजीमें हस्ताक्षर कर सकें तो परवाने लेते समय अँगुली या अँगूठा निशानी देना जरूरी नहीं ।

  मूल अंग्रेजी तार ( एस० एन० ५५३६) की फोटो नकल और २७-५-१९११ के इंडियन ओपिनियनसे भी ।
  
  
  
परिशिष्ट ७

ट्रान्सवाल स्थानीय शासन अध्यादेश, १९११ का प्रारूप

एशियाइयोंसे सम्बधित अंश

एशियाई बाजार

६६ (१) परिषद एशियाइयोंकी दूकानोंके लिए बाजारों या अन्य क्षेत्रोंका अलग से निर्धारण कर सकेगी, उन्हें ठीक हालतमें रखेगी तथा चलायेगी । ये बाजार और क्षेत्र केवल एशियाइयोंके लिए ही होंगे। वह समय-समयपर स्वयं जो उपनियम बनायेगी उसके अनुसार उनका नियन्त्रण तथा पर्यवेक्षण कर सकेगी, और उनमें स्थित भूमि या किसी भी इमारत या अन्य किसी भी रचनाको ऐसे विनियमों द्वारा समय-समयपर निर्धारितकी जानेवाली शर्तों तथा किराये की दरोंपर एशियाइयों को पट्टेपर दे सकेगा । (२) परिषद्को ऐसे बाजारों तथा क्षेत्रोंको बन्द करने और उनके लिए अन्य उपयुक्त प्रस्थान जुटानेकी क्षमता प्रदान करनेके लिए इससे पहलेके खण्डके उप-खण्ड (४) से (७) तककी सारी व्यवस्थाएँ यथोचित परिवर्तनोंके साथ लागू होंगी । (३) परिषद् गवर्नर-जनरलके अनुमोदन और उनकी सहमतिके बिना एशियाइयोंके लिए अलग से सुरक्षित ऐसे बाजारों या अन्य क्षेत्रोंको न तो निर्धारित करेगी और न बन्द और इस खण्डके अन्तर्गत बनाये गये किसी भी उपनियमका तबतक कोई प्रभाव नहीं होगा और न वह तबतक लागू होगा जबतक कि उसके लिए गवर्नर-जनरलका अनुमोदन और सहमति प्राप्त न कर ली गई हो ।

  ६७. (१) परिषद् अपने स्थापित किये हुए या अपने नियन्त्रणमें रहनेवाले किसी भी वतनी बस्ती या एशियाई बाजार या कस्बेमें तैंतीस वर्ष तक की अवधिके लिए गवर्नर-जनरल द्वारा अनुमोदित पद्धति और शर्तोंके अनुसार जमीनके टुकड़े पट्टेपर उठा सकेगा ।

(२) ऐसा प्रत्येक पट्टा वैध होगा, चाहे उसकी लिखा-पढ़ी नाजिर - रजिस्ट्री के सामने न हुई हो और ऐसा __________________________________________

  १. क्रूगरकी सरकारने एशियाइयोंको कुछ निश्चित बस्तियों में सीमित करनेका निर्णय सबसे पहले अप्रैल १८९९ में किया था और इनको विनियमित करनेकी सत्ता नगर परिषदोंको सौंपी गई थी; देखिए खण्ड

३, पृष्ठ ६२-६३ | अप्रैल १९०३ में युद्धके बाद बनी ब्रिटिश सरकारने ट्रान्सवालके लेफ्टिनेन्ट गवर्नर लॉर्ड मिलनरके शासन कालमें बाजार नोटिस जारी किया था; देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३१४-१५ । १९०५ में एक अध्यादेश द्वारा " बाजारों" की सीमाएँ निर्धारित करनेकी शक्ति नगर-परिषदोंको दे दी गई थी; देखिए, खण्ड ५, पृष्ठ २७-२८; खण्ड ३, पृष्ठ ३२८-३०९ खण्ड ४, पृष्ठ ७९-८१, खण्ड ५, पृष्ठ ८४-८६ और पृष्ट १५३-५६; खण्ड ६, पृष्ट ५० और खण्ड ८, १४ १९४, २४३, २४८ और २८७ ।