ट्रान्सवालमें रेल यात्रा ३११ सरीखे उन पुरुषोंको जन्म दे सकता है, जो कुछ भी हो जाये, सदा न्यायका पक्ष लेते हैं। श्री ह्यूमकी मृत्युसे भारतका एक सच्चा मित्र जाता रहा । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९१२ २६८. ट्रान्सवालमें रेल यात्रा रेलवे प्रशासन और कुमारी श्लेसिनके बीच जो पत्र-व्यवहार हुआ है, वह हम अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं । कुमारी श्लेसिनने जो प्रश्न उठाया है वह, निस्सन्देह, बहुत ही नाजुक है, और उसके लिए उन्हें बहुत समझदारी और सावधानीसे काम लेना होगा । प्रशासन के लिए भी उतनी ही समझदारी और विवेक बरतनेकी जरूरत है । हम समझते हैं कि भारतीय महिला संघकी अवैतनिक मन्त्रीकी हैसियतसे कुमारी श्लेसिन, अपनी गरिमा तथा जिन हितोंकी वे संरक्षिका हैं उनका खयाल रखते हुए, और कोई रुख अपना भी नहीं सकती थीं। अपने साथी कार्यकर्ताओंको, जो समान उद्देश्य से उनके साथ यात्रा कर रहे हैं, छोड़कर उनका कहीं और बैठना उचित नहीं होता । यदि वे ऐसा करतीं तो उसका मतलब होता समाजमें व्याप्त एक अनुचित और बेतुके पूर्वग्रहका जरूरतसे ज्यादा खयाल करना । और हमारा खयाल है कि कुमारी श्लेसिन यद्यपि रेल विभागको तुष्ट करनेकी स्वाभाविक इच्छा रखती हैं, फिर भी वे इन विनियमोंको लागू करनेके तरीकेसे बिलकुल बँधी हुई नहीं हैं; क्योंकि उनके इस तरहके प्रशासनसे उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती जिसे दृष्टिमें रखकर ये विनियम बनाये गये थे । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, ३१-८-१९१२ १. इस पत्र-व्यवहारका विषय ऐसी दो घटनाएँ थीं, जिनमें सोंना श्लेसिनको अपने भारतीय मित्रोंके साथ रंगदार लोगोंके लिए आरक्षित डिब्बोंमें यात्रा करते समय दूसरे ढिब्बेमें चले जानेको कहा गया था। दोनों ही मौकोंपर उन्होंने वहाँसे हटनेसे इनकार कर दिया था, और रेलवे प्रशासनको अपने ऊपर मुकदमा करनेकी चुनौती दी थी। Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३४७
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