एक उदात्त जीवन-गाथा ३०५ उनसे प्रभावित होकर कई वर्षोंतक उन्होंने उनके साथ विश्वकी समस्याओंका विशेष रूपसे भारतसे सम्बन्धित समस्याओंका अध्ययन किया । १८८७ में श्री रानडेकी' इच्छाके अनुसार श्री गोखले पूना सार्वजनिक सभाके 'क्वार्टरली जर्नल' के सम्पादक बने । बाद में वे डेकन सभाके अवैतनिक मन्त्री बने। चार साल तक वे पूनासे प्रकाशित अंग्रेजी और मराठी भाषाओं में छपनेवाले 'सुधारक' साप्ताहिकके भी एक सम्पादक रहे। चार साल तक वे बम्बईकी प्रान्तीय परिषद (बॉम्बे प्रॉविंशियल कौंसिल) के मन्त्री रहे और सन् १८९५ में जब राष्ट्रीय महासभा (इंडियन नेशनल कांग्रेस) का अधिवेशन पूनामें हुआ तो उसके एक मन्त्री श्री गोखले चुने गये । १८९७ में वे वेल्बी कमीशनके सामने अन्य प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्ताओंके साथ भारतीय व्यय (इंडियन एक्सपेंडीचर) पर साक्ष्य देनेके लिए इंग्लैंड जानेके लिए चुने गये। अपने उत्तम प्रशिक्षणके कारण विशेषज्ञ आयुक्तोंके प्रश्नोंकी बौछारसे वे तनिक भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने सिद्धान्तों व तफसीलके सम्पूर्ण ज्ञानका सुन्दर प्रदर्शन किया। इसी समय उन्होंने ब्रिटिश समाचारपत्रोंको भारतमें प्लेग से सम्बन्धित सरकारी प्रबन्धके बारेमें कुछ पत्र लिखे थे । इन पत्रोंको लेकर बादमें जो कुछ हुआ, उससे उनकी चारित्रिक ईमानदारीपर अच्छा प्रकाश पड़ता है। जब वे भारत वापस आये तो उनसे अपने आरोप सिद्ध करने को कहा गया और जब उनके मित्र, जिन्होंने उन्हें तत्सम्बन्धी जानकारी दी थी, उनके पक्षका समर्थन करनेके लिए आगे नहीं आये तो श्री गोखलेने सार्वजनिक जीवनकी उत्तम परम्परा निभाते हुए उदारतापूर्वक माफी माँग ली। इस शराफतके व्यवहारके कारण श्री गोखलेको कई क्षेत्रोंमें काफी अप्रिय बनना पड़ा । १९०० और १९०१ के बीच श्री गोखले बम्बई विधान परिषदके निर्वाचित सदस्य रहे; उपयोगी काम किया । १९०२ में वे सर्वोच्च विधान परिषदके, कौंसिल) जिसके अध्यक्ष भारतके वाइसरॉय हैं, सदस्य चुने गये । वहाँ बजटपर अपने पहले ही भाषण में उन्होंने जिस योग्यताका परिचय दिया, उससे लोग चकित रह गये । तबसे बराबर बजटके मौकेपर उनके भाषणकी प्रतीक्षा लोग उत्सुकता व दिलचस्पीसे करते रहे हैं। तथ्यों और आंकड़ोंपर उनके सम्पूर्ण अधिकारकी प्रशासनिक समस्याओंके विस्तृत ज्ञानकी, सादे, स्पष्ट और ओजस्वी वक्तृत्व तथा उद्देश्यकी सच्चाईकी सराहना तो उनके विरोधी भी करते हैं । भारतमें कुछ बहुत ऊँचे पदाधिकारी उनके निजी मित्र हैं और लॉर्ड कर्ज़नने भी श्री गोखलेको अपनी जोड़का "ऐसा प्रतिद्वन्द्वी " है जिससे दो-दो हाथ किये जा सकते हैं। कहते हैं, वाइसरॉयने उनके विषयमें यह कहा कि श्री गोखलेसे लड़ने में लड़नेका मजा है और मैं जिन भारतीयोंसे मिला उनमें श्री गोखले सबसे योग्य हैं। लॉर्ड कर्ज़नके मनमें श्री गोखलेकी योग्यता व चरित्र के प्रति आदरकी जो भावना है उसे उन्होंने उन्हें [ श्री गोखलेको ] सी० आई० ई० का खिताब देकर व्यक्त किया । " उन्होंने वहाँ अत्यन्त (सुप्रीम लेजिस्लेटिव माना १. श्री महादेव गोविन्द रानडे (१८४२-१९०१ ); अर्थशास्त्री, इतिहासकार और समाज-सुधारक; १८९३ में बम्बई उच्च न्यायालय के जज; राइज़ ऑफ मराठा पावर आदि अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकोंके लेखक । ११-२० Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३४१
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