पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३३८

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एशियाई पंजीयक २६१. पत्र : एशियाई-पंजीयकको [ लॉली ] अगस्त १९, १९१२ प्रिटोरिया महोदय, आपका इसी १८ तारीखका कृपा-पत्र प्राप्त हुआ । आशा है, मैं शीघ्र ही छः ब्रिटिश भारतीयों की सूची भेज सकूंगा । नामोंके बारेमें विचार-विमर्श किया जा रहा है । बहुत-से नाम आये हैं; उनमें से वे ही नाम भेजने हैं जो सर्वाधिक उपयुक्त हों । टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६९९ ) से । २६२. भेंट : 'ट्रान्सवाल लीडर' के प्रतिनिधिको आपका जोहानिसबर्ग अगस्त २२, १९१२ यद्यपि श्री गांधीका मुकाम आजकल जोहानिसबर्ग में नहीं है, किन्तु वे अब भी ऐसे सारे सार्वजनिक मामलोंसे अपनेको पूरी तरह अवगत रखते हैं जो उनके अपने लोगोंसे सम्बन्धित हैं । कभीके सत्याग्रही श्री गांधी आजकल टॉल्स्टॉय फार्ममें अपेक्षाकृत निवृत्त जीवन बिता रहे हैं और वे वहींसे घूमते-घामते यहाँ आ गये थे। कल सुबह 'लीडर' के प्रतिनिधिने उनसे एक भेंट ली । जब श्री गांधीसे यह पूछा गया कि क्या आपने चेचकके प्रकोपके सम्बन्धमें पिछले कुछ हफ्तों में प्रकाशित लेखोंको पढ़ा है, तो उन्होंने जवाबमें "हाँ" कहा। रंगदार- जातियों के पृथक्करणके सुझाव के सम्बन्धमें उन्होंने कहा कि मैं स्वेच्छया पृथक्करणको तो पसन्द करता हूँ, लेकिन किसी भी प्रकारको बाध्यताका विरोधी हूँ । पृथक्करणका किसी भी हालतमें कोई असर नहीं होगा । यदि भारतीयोंको एक इलाके में रखा जाये और आफ्रिकामें उत्पन्न यूरोपीयोंको दूसरेमें तब भी आप उन्हें रोजमर्राके कामकाजके सिलसिले में परस्पर मिलने-जुलनेसे रोक नहीं सकते । पृथक्करणसे छूतका खतरा भी दूर नहीं हो सकता । [ पृथक्करणके बाद भी ] आप देखेंगे कि ऐसा कोई १. पह पत्र उपलब्ध नहीं है; फिर भी देखिए पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ २७८ । Gandhi Heritage Portal