अतिरिक्त व्यय जब भगदड़ मचेगी तब कुल मिलाकर सस्ता ही पड़ेगा और लोगोंका
स्वास्थ्य भी सुधर जायेगा। डॉ० पोर्टरने इस भयानक रोगके विरुद्ध जो लड़ाई छेड़ी
है, उसमें उनकी जो भी सहायता की जा सके, अवश्य करनी चाहिए। वे उसके पात्र
हैं और हर प्रकारसे उसके अधिकारी हैं।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९१२
जोहानिसबर्ग में फिर चेचक फूट पड़ा है । ऐसे विशाल और घनी आबादीवाले नगरमें एक बार रोगके फैल जानेपर उसे तुरन्त समाप्त कर सकना या दबा सकना बहुत ही मुश्किल काम है । इसलिए रोगकी खबर फैलते ही जबरदस्त दौड़धूप शुरू हो गई हैं, और चेचकका टीका लगवानेके लिए हजारों लोगोंकी रेंग लगी हुई है। लेकिन रोगको फैलने से रोकने के लिए खास जरूरत इस बातकी है कि एक दूसरेसे इसकी छूत न लगने पाये । इसलिए विभिन्न समाजोंके लोगोंको अलग-अलग रखनेके प्रश्नपर विशेष जोर दिया जाने लगा है, और इसके लिए आवश्यक अधिकार प्राप्त करनेके प्रश्नपर भी विचार किया जा रहा है ।" यह कहने की जरूरत नहीं कि जब अलग रखनेकी बात उठी है तो भारतीयों को भी अलग रखनेकी बात होगी ही । और यदि भारतीयोंको रोगके कारण अलग बस्तियों में भेजने की बात हुई तब तो प्रजातीय भेदभाव के आधारपर कोई प्रश्न उठाना सम्भव भी नहीं हो सकेगा। फिर, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हम लोग रोगको ज्यादा छिपाते हैं, जिससे छूत और भी फैलती है। इसलिए हम भारतीयों को आगाह कर देना चाहते हैं कि इस बीमारीके बहाने [ हमारे विरुद्ध ] कुछ गम्भीर सुझाव दिये जा सकते हैं और उस समय हम उनका विरोध भी शायद ही कर सकें। इस बार रोगकी शुरुआत भारतीयोंसे नहीं हुई, और अभीतक उनमें बहुत कम लोग बीमार भी हुए हैं । फिर भी, इस सम्बन्धमें उन्हें कुछ कम सावधानी नहीं बरतनी है । डॉ० पोर्टरने कहा है कि भारतीयों आदिके कुछ घर, जो [ शहरके ] मध्य भागमें हैं, इतने गन्दे हैं कि उनको जलाकर बिलकुल नष्ट कर देना पड़ेगा। भारतीयोंका यह कर्तव्य है कि वे इन घरोंको तुरन्त खाली कर दें और इसके बाद जहाँ जायें वहाँ बहुत सफाईसे रहें । ऐसा करने में अगर कुछ खर्च भी उठाना पड़े तो वह ठीक ही माना जायेगा। इस सम्बन्धमें भारतीय समाजको चिकित्सा अधिकारीकी पूरी मदद करनी चाहिए । अगर समाज इस विषय में लापरवाही की तो इस रोगके बहाने उसके विरुद्ध मनचाहे सख्त कदम उठाये जायेंगे ।
[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९१२
१. देखिए पिछले शीर्षककी पाद-टिप्पणी २ ।