[ नेटाल भारतीय ] कांग्रेसके काम-धामके लिए मैं फिलहाल नहीं निकल सकूंगा ।
श्री वेस्टने किराया वगैरह ठीक लिखाया है। वह रकम उनसे मुजरा नहीं लेनी है । यहाँसे उन्होंने कुछ नहीं लिया ।
सम्भव है, मणिलाल डॉक्टर अपने वचनका पालन करने के लिए फीजी जायें। अभी एकदम तो वे वकालतका काम नहीं कर सकेंगे। नये कानूनके बन जानेपर ही यह सम्भव होगा ।
मोहनदासके आशीर्वाद
गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ५७१०) की फोटो नकल से ।
जोहानिसबर्ग में दूसरी बार चेचकका प्रकोप हुआ है। इस सम्बन्धमें जोहानिसबर्ग के भारतीयोंका ध्यान हम अन्यत्र दिये गये 'संडे पोस्ट' के एक उद्धरणकी ओर आकर्षित कर रहे हैं । अभीतक तो भारतीय बचे हुए जान पड़ते हैं । फिर भी उनका कर्त्तव्य है कि जिन कारणोंसे उनमें रोग फैलनेकी सम्भावना हो उन सबको दूर करके वे अधिकारियोंकी सहायता करें। उक्त लेखमें शिकायत की गई है कि हम सफाईके नियमों का पालन नहीं करते। इस आक्षेपके निवारणका सबसे अच्छा उपाय निस्सन्देह यह है कि हम अपने घरोंको खूब साफ-सुथरा रखें। हमें सफाईके साधारण नियमोंका पालन करनेके लिए मुकदमा चलने या नोटिस मिलनेकी घड़ी तक रुके नहीं रहना चाहिए। कहते हैं, डॉ० पोर्टरने एक मिलनेवालेसे कहा कि ठीक जोहानिसबर्गके बीचों- बीचमें ही कुछ ऐसे मकान हैं जो पूर्णतया नष्ट कर दिये जानेके सिवा किसी मसरफके नहीं हैं; और उनमें अन्य लोगोंके अतिरिक्त भारतीय और अनेक यूरोपीय भी रहते हैं। हमारी राय है कि इस इलाके में जिन मकानोंकी मरम्मत ठीक तरहसे न की जा सकती हो, उनमें रहनेवाले भारतीयोंको उन्हें एकदम खाली करना शुरू कर देना चाहिए। सम्भव है कि उन्हें किराया कुछ अधिक देना पड़े, परन्तु वे देखेंगे कि यह
१. मणिलाल डॉक्टर इस तारीख से पहले ही जा चुके थे। इसलिए जान पड़ता है, गांधीजी यह कहना चाहते थे कि “ मणिलाल डॉक्टर अपने वचनका पालन करनेके लिए फीजीमें ठहरेंगे "; देखिए "पत्र : मनसुखको", पृष्ठ २८७-८८ । इस वाक्यको इस पृष्ठभूमिमें भी समझने की आवश्यकता है कि मणिलाल डॉक्टर ट्रान्सवाल छोड़नेको राजी नहीं थे; देखिए “ १९१२ की डायरी" में ८ जुलाईकी टीप |
२. इसमें एक मुलाकातके सिलसिले में स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी डॉ० पोर्टरकी इस उक्तिका उल्लेख था : “गत अनुभवोंके आधारपर तो यही लगता है कि ऐसी बीमारियोंको फैलने से रोकनेका उपाय नगरकी गोरी और रंगदार आबादीका पृथक्करण है...। आवश्यकता इस बातकी है कि [नगर-] परिषदको सभी रंगदार लोगोंको चाहे वे मलायी हों या भारतीय, केपकी रंगदार जाति हो या चीनी- ...निर्धारित बस्तियों में बसानेका अधिकार दिया जाये । इस समय [नगर-] परिषदको तो यह अधिकार नहीं ही है, प्रान्तीय परिषद् भी...इस दृष्टिले असमर्थ है।” इंडियन ओपिनियन, १७-८-१९१२ ।