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पत्र : गृह मन्त्रीके सचिवको

कब्रिस्तान बस्ती बसाने के लिए खासा अच्छा स्थान हो सकता है, परन्तु अन्य अनेक सर्वथा उचित दृष्टियों से वही स्थान बिलकुल अनुपयुक्त ठहर सकता है। जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं, यह एक विचित्र संयोग है कि नगरपालिकाओंको एशियाई बाजारों और वर्तनियोंको बस्तियां बसाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र घूरा जमा करनेके स्थानोंके समीप ही मिलता है। अब तो हम इतना ही कह सकते हैं कि डॉ० आरनॉल्डकी अनुकूल रिपोर्टके बावजूद जर्मिस्टन के भारतीयों को इस सड़ियल जगहपर जानेसे इनकार कर देना चाहिए। हम जानते हैं कि उन्हें इस जगह जानेसे इनकार करनेके लिए असाधारण साहसकी आवश्यकता पड़ेगी । पुरानी बस्तीके सारे कारोबारको ठप्प करके नगरपालिकाने वहाँ रहना प्रायः असम्भव कर दिया है। वह कई इमारतें गिरा चुकी है और अन्य इमारतों के मालिकोंको यह धमकी दे रही है कि यदि वे बस्ती में व्यापार करते पकड़े गये तो उनका भी यही हाल किया जायेगा । हमें आशा है कि जस्टिनके भारतीयों को कितनी ही कठिनाइयोंका सामना क्यों न करना पड़े, वे दृढ़ रहेंगे और नगरपालिका द्वारा बिछाये हुए जालमें फँसनेसे इनकार कर देंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९१२


२५१. पत्र : गृह-मन्त्री के सचिवको

टॉल्स्टॉय फार्म

लॉली स्टेशन

ट्रान्सवाल

अगस्त ३, १९१अगस्त२

[ सेवामें ]

गृह मन्त्रीके सचिव

केप टाउन

महोदय,

आपका इसी १ तारीखका कृपा-पत्र,' संख्या ३४ / ई / १५३३०, प्राप्त हुआ । आपने २२ तारीखके जिस पत्रका उल्लेख किया है वह मेरे सामने नहीं है, परन्तु मेरा खयाल है कि यह वही पत्र' है जो श्री सोढाके बारेमें मैंने मन्त्रालय के सचिवको लिखा था। चूँकि मामला बहुत जरूरी है, इसलिए मैं फार्मपर से ही जवाब दे रहा हूँ।

मेरी नम्र रायमें शिक्षित भारतीयोंके प्रवेशके प्रश्नसे इसका कोई सरोकार नहीं है कि वे व्यक्तिगत लाभके लिए आते हैं अथवा समाजकी जरूरत की पूर्तिके लिए। मेरा अनुमान है कि कानून बन जानेके बाद शिक्षित व्यक्ति अपनी योग्यताके बलपर ही निर्धारित संख्या में प्रवेश पायेंगे। जिन लोगोंने कानूनी समानताके सिद्धान्तके लिए संघर्ष किया है, उनकी यह मान्यता रही है कि उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय अपना-अपना

१. और २. देखिए “पत्र : गृह-सचिवको”, पृष्ठ २८३ ।