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२४४. जमिस्टनके भारतीय

प्रत्यक्ष है कि जस्टिनकी नगरपालिका वहाँकी वस्तीमें बसे हुए भारतीयोंको बरबाद करनेमें सफल हो गई है । काला सिंह बनाम नगरपालिकाके मुकदमेके बाद, नगरपालिका भारतीयोंकी अनेक इमारतें गिरा चुकी है; और अब ऐसे कई भारतीयोंको, जिनपर बस्ती में व्यापार करनेका सन्देह है, नीचे लिखा हुआ अपने ढंगका निराला नोटिस जारी किया गया है :


मालूम हुआ है कि आप जॉर्ज टाउन बस्तीके बाड़े में स्थित दूकानपर परचूनकी चीजें बेचते हैं। अब मुझे हिदायत हुई है कि इस शिकायतकी पुष्टिके सबूत इकट्ठे करूँ । आपको [ जुर्म करते हुए ] पकड़ने की कोशिश की जायेगी और यदि वह सफल हो गई तो क्या परिणाम होगा, इसका आपको पता चल जायेगा ।


परिणाम उनकी इमारतोंकी जब्ती ही समझिए। और इस प्रकार नगरपालिका उम्मीद कर रही है कि वह भारतीयोंको धीरे-धीरे भूखों मरनेपर मजबूर करके उन घूरोंपर जा बसनेपर लाचार कर देगी जो उसने नई बस्ती बसाने के लिए चुन रखे हैं । १८८५ का कानून ३ भारतीयोंको बस्तियोंमें व्यापार करनेका विशेष रूपसे अधिकार देता है, परन्तु जर्मिस्टनकी नगरपालिका अब इसे भी सफलता के साथ खत्म किये दे रही है ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९१२


२४५. बॉक्सबर्गका मुकदमा '

श्री भायातके मुकदमेके फैसलेका फल यह निकला है कि स्वर्ण-क्षेत्र में रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंके कारोबारका मूल्य चार टके भी नहीं रहा । 'ईस्ट रैंड एक्सप्रेस' ने


१. आमद मूसा भावात हाइडेलबर्गके एक जाने-माने व्यापारी थे । सत्याग्रहीके रूपमें उन्होंने बड़ी आर्थिक क्षति उठाई थी और कैद भी भोगी थी । ६ नवम्बर, १९११ को उन्होंने बॉक्सबर्ग में श्री रिचके नाम दर्ज अहाते में एक दूकान खोली । यूरोपीयोंने इसे अपने व्यापारके लिए खतरा समझा और इस बातको लेकर भारी तूफान खड़ा कर दिया । ईस्ट रैंड एक्सप्रेस तथा ट्रान्सवाल लीडर - जैसे पत्र उनकी वकालत करनेको आगे आये और नगर परिषद् ने भी स्वभावतः उनका ही पक्ष लिया। सरकारपर जबरदस्त दबाव डाला गया और निदान उसने १२ जनवरी, १९१२ को श्री रिचके नाम नोटिस जारी किया कि वे २१ अगस्त, १९११ का ताजका अनुदान, जिसके अन्तर्गत उन्हें बाड़ोंपर निष्कर स्वामित्व (फ्रीहोल्ड) दिया गया था, वापस कर दें; क्योंकि उन्होंने एक रंगदार व्यक्तिको बाड़े में रहने की अनुमति देकर उस अनुदानकी शर्तें तोड़ डाली हैं । सरकारकी अर्जीपर १२ फरवरी, १९१२ को सर्वोच्च न्यायालय की ट्रान्सवाल शाखाने श्री रिच और श्री भायातके नाम समन्स जारी किये और ७ जूनको मुकदमेकी सुनवाई हुई ।इंडियन ओपिनियनके ४-११-१९११ से लेकर १३-७-१९१२ तकके अंकोंके आधारपर।


२. न्यायाधीश मैसनने निर्णय दिया कि श्री रिच उन शर्तोंसे ( अर्थात्, कस्बा कानून और स्वर्ण- अधिनियमकी सम्बन्धित धाराओंसे ) बँधे हुए हैं, जिनपर उन्हें ताजकी जमीनका स्वामित्व हस्तान्तरित