परन्तु लॉर्ड ऍम्टहिलके, जो हमारे पक्षका समर्थन अनथक उत्साहसे करते रहे हैं, आक्षेपोंका उत्तर अबतक नहीं दिया गया है।" उनका प्रधान आक्षेप यह है कि समझौते के शब्दोंका तो पालन किया जा रहा है, परन्तु उसकी भावनाको भंग कर दिया गया है। भावना यह है--और जनरल बोथाकी सार्वजनिक घोषणाएँ भी यही हैं -- कि जो भारतीय दक्षिण आफ्रिकामें बस चुके हैं उन्हें शान्तिपूर्वक रहने दिया जायेगा । परन्तु जबतक भारतके कानूनों द्वारा मान्यता प्राप्त पत्नियोंको यहाँ से लौटाया जाता रहेगा, जबतक स्वर्ण- अधिनियम और कस्बा - कानूनका प्रयोग इस प्रकार किया जाता रहेगा कि भारतीय व्यापारी लगभग तबाह हो जायें, जबतक पुराने निवासियोंके बसनेके लिए पहले जो वस्तियाँ निर्दिष्ट की गई थीं उन्हें उनसे निकलनेपर विवश किया जाता रहेगा, जबतक निवासके प्रमाणपत्रोंकी उपेक्षा की जाती रहेगी, जबतक विवाह अथवा अधिवास प्रमाणित करने के लिए असम्भव प्रमाणोंकी माँग की जाती रहेगी और जबतक परवाना कानूनोंके अत्याचारपूर्ण अमलके द्वारा व्यापार करना प्रायः असम्भव किया जाता रहेगा, तबतक शान्ति नहीं हो सकेगी ।"
[अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-७-१९१२
१. लॉर्ड सभामें अस्थायी समझौतेके अमलके विषय में लॉर्ड ऍम्टहिलके १७ जुलाई, १९१२ को किये गये प्रश्नके लिए देखिए परिशिष्ट १८ ।
२. सन् १९०९ में बोथाने लॉर्ड कर्ज़नको आश्वासन दिया था कि वे ब्रिटिश भारतीयोंके साथ न्याय और उदारताका व्यवहार करेंगे; देखिए खण्ड ९, पृष्ठ १७४ । २३ मई १९११ को अस्थायी समझौतेपर अपने विचार प्रकट करते हुए जनरल बोयाने कहा था कि समझौता बहुत उपयुक्त समयपर हुआ। उन्होंने यह चेतावनी तो दी थी कि दक्षिण आफ्रिकामें केवल उन्हीं भारतीयोंको प्रवेश करने दिया जायेगा, जिन्हें समझौते के अनुसार ऐसा करनेका अधिकार होगा; किन्तु साथ ही उन्होंने यह वचन भी दिया था कि भविष्य में भारतीय क जीवनकी परिस्थितियोंको दक्षिण आफ्रिकामें जितना सा बनाया जा सकता है, उतना सा बनानेकी पूरी कोशिश की जायेगी । सच तो यह है कि उन्होंने स्पष्ट कहा था कि उनके मनमें भारतीयों के प्रति कोई दुर्भाव नहीं है । लन्दन में शादी परिषद् में भाग लेनेके बाद, २६ सितम्बर, १९१२ को रीट फॉटोनमें बोलते हुए उन्होंने कहा था कि एशियाई सवालको हल करनेकी कोशिश में जनरल स्मट्सने इतना परिश्रम किया कि वे सूख कर काँटा हो गये ।
३. देखिए “कुमारी मॉड पोलकके नाम लिखे पत्रका अंश ", पृष्ठ ४-५ और परिशिष्ट २१ ।
४. स्वर्ण- अधिनियम या करवा-कानूनके द्वारा उन भारतीयोंको बस्तियोंमें जाकर बसनेपर मजबूर किया जा रहा था, जो " घोषित क्षेत्रों " तथा अन्य ऐसे क्षेत्रोंमें रह रहे थे, जहाँ उन्होंने अपना खासा कारोबार बना लिया था । जो स्थान इससे प्रत्यक्ष रूपसे प्रभावित होते थे उनमें क्लार्क्सडॉर्प (“ कुमारी मॉड पोलकके नाम लिखे पत्रका अंश ", पृष्ठ ४-५) क्रूगर्सडॉप (“ तूफान उमड़ रहा है ", पृ४ १३५ ) और रूडीपूर्ट तथा जस्टिन ( " जर्मिस्टनके भारतीय", पृष्ठ १५२-५३ और २४४ ) आदि शामिल थे ।
५. भारतीयों के विरोध के परिणाम स्वरूप सन् १९११ और १९१२ के संघ प्रवासी विधेयक में जनरल स्मट्स द्वारा प्रस्तावित परिवर्तनोंसे सहमत होते हुए गांधीजीने कहा था कि अपनी दूसरी शिकायतों (जिनका खासा ब्योरा इस लेख में मिल जाता है) को लेकर भारतीय भविष्य में संघर्ष कर सकते हैं; देखिए “तार : गृह-मन्त्रीको", पृष्ठ २२४-२५ और “ आखिरकार ! " पृष्ठ ९१-९२ ।