जुलाई २२, १९१२
गृह-सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,
जिन ब्रिटिश भारतीयोंको पिछले वर्ष समझौते के अन्तर्गत प्रवेश मिला था,उनमें से श्री आर० एम० सोढा एक हैं। जैसा कि मैंने गत वर्ष निवेदन किया था,श्री सोढा जीविकोपार्जनके लिए ट्रान्सवालमें कोई रोजगार करना चाहते हैं, परन्तु चूंकि खयाल यह था कि पिछले अधिवेशन में कानून बन ही जायेगा, इसलिए समाजने श्री सोढाके गुजारेकी व्यवस्था कर दी । परन्तु वे, स्वाभाविक है, बेकार नहीं बैठना चाहते, और व्यापारिक परवाना लेनेके लिए चिन्तित हैं। मैं समझता हूँ कि उन्हें जो अनुमतिपत्र दिया गया है, उसके आधारपर उन्हें परवाना नहीं मिल सकता । इसलिए यदि सोढा द्वारा पंजीयन प्रमाणपत्र पेश किये बिना, सरकार राजस्व आदाताको एक परवाना जारी करनेका अधिकार दे दे तो बड़ी कृपा हो ।
आपका
[ मो० क० गांधी ]
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६६९) की फोटो - नकलसे ।
संघ-सरकार और श्री गांधीमें जो पत्र-व्यवहार हुआ है वह पढ़ने में मनोरंजक है। इसके अनुसार गत वर्षका अस्थायी समझौता तबतक चलता रहेगा जबतक कि इस सम्बन्धमें कोई सन्तोषप्रद कानून, जिसे सरकार संसदके अगले अधिवेशनमें दुबारा पेश करनेकी बात सोच रही है, पास नहीं हो जाता। इस बीच छ: शिक्षित ब्रिटिश भारतीयोंको ट्रान्सवालमें इस प्रकार आने दिया जायेगा मानो यह कानून पहले ही स्वीकृत हो चुका हो ।" यह सब अच्छा है । इस पत्र-व्यवहारमें विवादास्पद प्रश्नोंके कारण पुनः सत्याग्रह छिड़ने से बचनेका यत्न किया गया है।
१. एशियाई पंजीयक माउन्ट फोर्ड चैमनेने अगस्त १ को इसका जवाब देते हुए लिखा “...मेरी समझके मुताबिक समझौतेका मंशा यह था कि प्रतिवर्ष छः शिक्षित एशियाइयोंको उनके ऐसे देशभाइयों के हित और लाभकी दृष्टिसे प्रवेश दिया जाये जिन्हें उन्हींकी तरह शिक्षा नहीं मिल पाई है। मेरी रायमें उसका यह मंशा कदापि नहीं था कि उक्त छः भारतीयोंको उनसे अपने स्वार्थ साधनके लिए प्रवेश दिया जाये । कृपया अपने विचारोंसे अवगत करें । " - (एस० एन० ५८६२ )
२. जनवरी २९ और जुलाई १७, १९१२ के बीचमें
३. २० मई १९११ का ।
४. देखिए " पत्र : गृह मन्त्रीको", पृष्ठ २७८ ।