[ लॉली ]
जुलाई १७, १९१२
माननीय गृहमन्त्री
प्रिटोरिया
महोदय,
प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकसे सम्बन्धित मेरे पत्रोंके जवाबमें आपका १६ तारीख- का पत्र मिला। उसके लिए धन्यवाद ।
मेरी समझमें आपके पत्रका अर्थ यह है कि समझौते के अनुसार अपेक्षित कोई सन्तोषजनक कानून बन जाने तक पिछले वर्षका अस्थायी समझौता कायम रहेगा। इसलिए मैं मान लेता हूँ कि उक्त सम्भावनाके आधारपर पिछले वर्षकी तरह ही इस वर्ष भी कुछ शिक्षित एशियाइयोंको प्रवेश दिया जायेगा। आपका पत्र मिलने- पर इस प्रान्तमें प्रवेश पानेके इच्छुक शिक्षित भारतीयोंके नाम सरकारके पास भेज दिये जायेंगे, ताकि उन्हें अनुमतिपत्र प्राप्त हो सकें।
आपका
[ मो० क० गांधी ]
जुलाई २०, १९१२ के 'इंडियन ओपिनियन' और टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६६३) की फोटो नकलसे भी ।
श्री कजिन्स अभी तक " बेधड़क बढ़ते ही जा रहे हैं।" उन्हें हमारी माताओं और बहनोंका अपमान करके ही सन्तोष नहीं • यद्यपि इससे अधिक बड़ी बात हो भी क्या सकती है ? • वह हमें हर बातमें छेड़ना चाहते हैं । उनका नया हुक्म यह है कि जो लोग भारतसे लौटें वे कागजात पेश करके अपनी शिनाख्त प्रमाणित तो करें ही, किन्तु केवल इतनेसे काम नहीं चलेगा; वे [ कजिन्स साहब ] अपने-आप
१. इसके जवाब में कार्यवाहक गृह सचिवने जुलाई १९ को लिखा: “मैं आज आपके नाम भेजे गये निम्नलिखित तारकी पुष्टि करता हूँ: । गत वर्षका अस्थायी समझौता कानून बन जाने तक कायम रहेगा। इसलिए इस साल छः शिक्षित भारतीयोंको पंजीयनका सवाल उठाये बिना प्रवेश दिया जायेगा...। उपर्युक्त तारके सम्बन्ध में उन छः शिक्षित भारतीयोंके नाम भेज देनेकी कृपा करें जिन्हें आप इस वर्षं प्रवेश दिलाना चाहते हैं ।" (एस० एन० ५६६७)
२. देखिए पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ २६८ ।
३. देखिए "नया मुल्ला", पृष्ठ २७४-७६ ।