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नेटालमें अधिवास प्रमाणपत्रोंका सवाल

सारा सवाल सरकारकी कंजूसीका ही है। एक ओर अधिकारीगण अदालतों में पर्याप्त संख्या में योग्य दुभाषिये रखनेकी बातपर कुछ सौ पौंड सालाना खर्च करते हुए पाई-पाईका विचार करते हैं, परन्तु दूसरी ओर सरकारी इमारतोंके लिए लाखों पौंड खर्चते हुए उन्हें कोई कलक नहीं होता । इस अपव्ययकी श्री मेरीमैन आदि संसद सदस्योंने बड़ी कठोर आलोचना की है। जबतक सभी भारतीय भाषाओंके योग्य दुभाषिये नियुक्त नहीं किये जाते तबतक यह नहीं कहा जा सकता कि भारतीयोंके साथ पर्याप्त न्याय किया जाता है।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९१२


२३५. नेटालमें अधिवासके प्रमाणपत्रोंका सवाल

नेटालमें भारतीयोंको अब अधिवासके नये प्रमाणपत्र नहीं मिलते। इतना ही नहीं, जिनके पास पुराने प्रमाणपत्र हैं उनसे वे ले लिये जाते हैं और नया हलफनामा पेश करनेपर ही उनके बदले नये प्रमाणपत्र दिये जाते हैं। इससे गरीब भारतीयोंको बड़ी तकलीफ होती है। हमें लगता है कि अधिवासपत्रोंके इस सवालको लेकर कांग्रेस जो मुकदमा लड़ना चाहती थी वह उसे अवश्य लड़ना चाहिए। इस बीच जिनके पास पुराने प्रमाणपत्र हैं उनको, उन्हें लौटाकर नये लेनेकी कोई जरूरत नहीं है । जिसे नया प्रमाणपत्र लेना ही हो उसे भी अधिकारीको दुबारा प्रमाण देनेकी जरूरत नहीं है। जिसके पास कुछ न हो वह हलफनामा देकर और अपने निवासके प्रमाणोंको जितना बने उतना मजबूत बनाकर अधिवासपत्रके बिना ही यह देश छोड़ सकता है। कोई भी व्यक्ति अधिवासका प्रमाणपत्र रखनेके लिए बाध्य नहीं है । इसलिए प्रमाण इकट्ठे कर लेनके बाद देश छोड़ने में कोई परेशानीकी बात नहीं है ।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १३-७-१९१२