पेश किया जायेगा ।' यदि उक्त प्रमाणपत्र प्रस्तुत न किया जाय तो श्री कज़िन्स यह चाहते हैं कि किसी उच्च यूरोपीय मजिस्ट्रेटका इस आशयका प्रमाणपत्र, उसपर पत्नीका अँगूठा लगवाकर पेश किया जाये कि यह स्त्री प्रार्थीकी ही पत्नी है और उक्त उच्च अधिकारीने स्वयं प्रार्थीको शपथके आधारपर इस विवाहकी तारीख आदि की जाँच कर ली है। फिर प्रार्थीको अपनी शिनाख्तका भी असन्दिग्ध प्रमाण देना चाहिए और उस यूरोपीय अधिकारीको अपने सामने दिये हुए बयानोंकी मूल प्रति, पति तथा पत्नी की शिनाख्त के प्रमाणोंके साथ भेजनी चाहिए। परिपत्र में इसी प्रकारकी और भी अनेक बातें हैं । इस प्रकार श्री कज़िन्सने इस एक परिपत्रके द्वारा भारतीय स्त्रियोंका अपमान और भारतीय मजिस्ट्रेटों • और न्यायाधीशों तक की ईमानदारी- पर अविश्वास तो किया ही है (न्यायाधीशोंका नाम लेनेका हमारा कारण यह है कि हमारी समझमें यदि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भारतीय होंगे तो श्री कज़िन्स उनके प्रमाणपत्रोंको भी नहीं मानेंगे), उन्होंने उच्च यूरोपीय अधिकारियों तक का अपमान कर डाला है, क्योंकि वह चाहते हैं कि ये उच्च यूरोपीय अधिकारी अपने प्रमाणपत्रोंके साथ वे कागजात भी भेजें जिनके आधारपर उन्होंने ये प्रमाणपत्र दिये हों । हमें आशा है कि इस असाधारण परिपत्रके विषय में भारत सरकार अपना कुछ- न कुछ मत प्रकट करेगी; इसके द्वारा भारतीय जनताका जो अकारण अपमान किया गया है उसे वह चुपचाप नहीं सह लेगी; और नेटालके भारतीय इसकी वही गति करेंगे जिसके कि यह योग्य है और अपनी पत्नियोंके अँगूठेका या अन्य कोई निशान लगवानेसे साफ इनकार कर देंगे । भारतीय पुरुषोंपर यदि छद्म-परिचय देने या चोरी-छिपे प्रवेश करने आदिका कोई सन्देह हो तो उनसे अपनी शिनाख्त देनेको कहना एक बात है; परन्तु भारतीय स्त्रियोंका अपमान करने के लिए वैसी शर्त रखना और बात हो जाती है । आशा है कि संघकी सरकार इस परिपत्रको वापस करवाकर साधारण साक्षीको ही पर्याप्त मान लेनेकी प्रथा जारी रहने देगी। हम श्री कजिन्सको बतलाना चाहते हैं कि किसी सरकारी अधिकारीकी योग्यता उन लोगोंको डराने- धमकाने में अपना जोश दिखलाते रहने में नहीं है, जिनसे उसका वास्ता पड़ता है प्रत्युत इस बात में है कि उसे जिन कानूनों का पालन करानेके लिए नियुक्त किया जाये
१. “ अपनी पत्नियोंको प्रवेश दिलानेके इच्छुक प्रार्थियोंके नाम जारी किये गये " इस परिपत्र में यह भी कहा गया था कि प्रार्थीके लिए श्री कजिन्सको यह विश्वास दिलाना आवश्यक होगा कि स्वयं वह वैध निवासी है। इंडियन ओपिनियन, १३७-१९१२ ।
२. परिपत्र में आगे कहा गया था कि मजिस्टेटको यह घोषणा भी करनी पड़ेगी कि (क) उसके द्वारा प्रमाणित तथ्य सही हैं और (ख) उसने पुलिस द्वारा जाँच करवा ली है। उसे कागजात के साथ पुलिस जाँचकी रिपोर्ट भी नत्थी कर देना जरूरी था और यह स्पष्ट कर देना भी कि प्रार्थनापत्र में प्रवेशार्थीके तथा वह जिस व्यक्तिके अधिकारके आधारपर प्रवेश करना चाहता है, उसके बीच बताया गया सम्बन्ध सही है ।
३. सन् १९०६ से ही भारतीयोंपर बार-बार यह आरोप लगाया जा रहा था कि वे चोरी-छिपे उपनिवेशमें प्रवेश कर जाते हैं और अपना छदम-परिचय देते हैं; देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २३१-३२ और ४३४, खण्ड ६ पृष्ठ १, ५५-५६; खण्ड ७ पृष्ठ २८६-८७ और खण्ड ८, पृष्ठ ९-११, ११७-२० तथा १७४ |