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पत्र : मगनलाल गांधीको



मेरा खयाल है मैं गरीबीके तत्वको दिन-ब-दिन अधिकाधिक समझता जा रहा है। जान पड़ता है कि वास्तविक लाचारी उपस्थित होनेपर और अधिक समझ पाऊँगा। श्रीकृष्ण और व्यासका ज्ञान शष्क है, यह लिखना तो मेरा उदृश्य नहीं था। मैने जो उदाहरण दिया है वह तो प्रभुराम वैद्यके भाई जयकृष्ण व्यासका दिया है। यदि मेरा पत्र तुमने रख छोड़ा हो तो फिर पढ़ लेना; उससे बात अधिक साफ हो जायेगी। कह नहीं सकता, कोई अक्षर छूट गया हो; और अर्थका अनर्थ हो गया। जयकृष्ण व्यासने वेदान्तके विषयपर बहुत अच्छा लिखा है। उसका कुछ भाग मैंने पढ़ा है। मैं समय-समयपर उनके पास जाया करता था। गरीबीके सम्बन्धमें लिखने लगा तो जयकृष्ण व्यासका खयाल मनम आया। सुदामा-चरित्रम म पढ़ चुका था। सुदामा और नरसिंह मेहताकी गरीबीसे होड़ करनेकी मुझे प्रेरणा हुई और आज भी है। उसीके आधारपर मैंने लिखा है कि जयकृष्ण व्यासका ज्ञान शष्क ज्ञान है और सुदामाजीका ज्ञान खरा ज्ञान है और इसलिए अनुकरणीय है। जयकृष्ण व्यास अपनी पेटीकी चाबी अपनी कमरमें बाँधे घूमते थे। यह मैंने देखा है। उन्होंने धनसंग्रह भी खूब किया था यह मैं जानता हूँ; अत: उन्होंने जो कुछ 'पंचीकरण में लिखा है, यह सब मुझे उसके विरुद्ध जान पड़ा।

श्रीकृष्णको तो मैं परमात्माके रूप में देखता हूँ। वे अर्जुनके सारथी और सुदामाके मित्र थे तथा नरसिंह मेहताके रणछोड़जी। उनके सम्बन्धमें टीका करनेका स्वप्नमें भी विचार नहीं था। तुम्हारे मनमें यह भाव मेरे पत्रके कारण आया उस हद तक मैं पापका भागी हूँ। मुझसे इस विषयमें एक अक्षर भी कैसे छूट गया यह सोचकर मैं थर्रा जाता हूँ। तुम्हारा पत्र आज (शनिवारको) आया तभीसे घबराया हुआ हूँ। पाठ पूरा करके लिखने बैठा हूँ और पहला पत्र तुम्हारा ही लिया है। इसे मैं अपने जीवनकी बड़ी अधम स्थिति मानता हूँ कि पत्रोंको लिखनेके बाद उन्हें पुनः पढ़ लेने तक की गुंजाइश नहीं रखता --न वह मिलती है और न रहती ही है। इसे चाहे जिस तरह कहो मेरा दोष तो ज्योंका त्यों बना हुआ है, ऐसा मानता हूँ। जबतक मनकी ऐसी अति चंचल गति है तबतक ऐसा ही होता रहेगा।

सुदामाजीको स्त्रीने जो उपालम्भ दिये है उन्हें मैं अलंकारिक मानता हूँ, तथापि शब्दश: वह ऐसा ही बोली हो तो भी इसमें कोई अनोखापन या प्रतिकूलता नहीं जान पड़ती। स्त्री इसी प्रकार बोलती है। सुदामाजीकी इच्छा सब कुछ सहन करते रहने की थी; तो स्त्री कहेगी ही कि ऐसे काम नहीं चलेगा। जब श्रीकृष्ण-जैसे मित्र है तो उनसे मदद क्यों न मांगी जाये। कुछ भी हो, इतना तो सत्य है कि सुदामाजी बहत गरीब थे और उसी स्थितिम सन्तुष्ट थे। इसी प्रकार वे एक महान भक्त भी थे। नरसिंह मेहताको श्रीकृष्णके दर्शन हुए किन्तु उन्होंने अपनी गरीबीसे मुक्त होनेकी इच्छा तक नहीं की।

यहाँ तो आजकल अलोनेका प्रयोग बड़े जोरोंसे चल रहा है। केले जब जोहानिसबर्ग जाता हूँ तब लेता आता हूँ। इसी तरह सेव भी। जैतूनके तेलका एक छोटा डिब्बा लिया

१. देखिए “ पत्रः छगनलाल और मगनलाल गांधीको", पृष्ठ १४४ ।